For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक माँ होती है ....

इक माँ होती है ....

कितना ऊंचा
घोंसला बनाती है
नयी ज़िन्दगी का
ज़मीं से दूर
घर बनाती है
अपने पंखों से
अपने बच्चों को
हर मौसम के
कहर से बचाती है
न जाने कहाँ कहाँ से लाकर
अपने बच्चों को
दाना खिलाती है
पंख आते हैं
तो उड़ना सिखाती है
नए पंखों को
आसमां अच्छा लगता है
ज़मी से रिश्ता बस
सोने का लगता है
देर होते ही मां
घोंसले पे आती है
नहीं दिखते बच्चे
तो बैचैन हो जाती है
सांझ होते ही
घबराहट बढ़ जाती है
अपनी उड़ान का
घमंड लिए
बच्चे स्वतन्त्र हो जाते हैं
अपने ही घोंसले को
भूल जाते हैं
चिड़िया चोंच में दान लिए
वहीं बैठी रहती है
बच्चों को शायद
अब जरूरत न हो मगर
पंख अब भी
खाली घोंसले पर
फैले रहते हैं
बच्चे क्या जानें
ममता क्या होती है
वो पास रहें या दूर
वो सदा उनके पास होती है
पत्थर से हालातों को सहती
जो हर पल
मोम सी पिघलती है
वो इस जहां में
सिर्फ
इक माँ होती है

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित


अपनी सहर

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 4, 2016 at 1:39pm

आ. समर कबीर जी कन्फर्म करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Samar kabeer on August 3, 2016 at 6:42pm
क़ह्र " सही शब्द है, क्षमा कीजिये में 'कह'लिख दिया था ।
Comment by Sushil Sarna on August 3, 2016 at 4:31pm

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी प्रस्तुति में निहित मर्म को अपने स्नेहिल शब्दों से अलंकृत करने  का हार्दिक आभार। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 3, 2016 at 11:45am

अब जरूरत न हो मगर 
पंख अब भी 
खाली घोंसले पर 
फैले रहते हैं 
बच्चे क्या जानें 
ममता क्या होती है 
वो पास रहें या दूर 
वो सदा उनके पास होती है...........वाह! मार्मिक और सुन्दर ह्रदयस्पर्शी  प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय सुशील सरना साहब. सादर. 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:23pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी     जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:22pm

आदरणीय  सुरेश कुमार 'कल्याण'    जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:22pm

आदरणीय Harash Mahajan    जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:21pm

आदरणीय    समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को दिली दाद से नवाज़ने का तहे दिल से शुक्रिया।  सर कहर  शब्द का सही शब्द 'कह' है  या 'कह्र ' है।  मेरे विचार में क ह्र होना चाहिए। आप ज्ञाता हैं कृपया मार्गदर्शन करने की कृपा करें। अपने इस आम प्रचलित शब्द को सही बताया आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:12pm

आदरणीया  pratibha pande     जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:27pm

आदरणीय सुशील भाई , माँ  तो बस माँ होती है ,  खूबसूरत भाव पूर्ण प्रस्तिति के लिये हार्दिक बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service