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गुस्से को शांति में बदलने
में वक्त लगता है......
अंधेरों से उजाले चमकने
में वक्त लगता है......
सब्र कर, कोशिशें अपनी
जारी रख
जंग लगे ताले को खुलने
में वक्त लगता है. ....
जब थक जाए तो रूक,
सोच, हिम्मत बुलन्द कर,
हर हार के बाद जीतने
में, वक्त लगता है. .....
फिर से महकेंगे तेरे
घर-आंगन,टूटे सपनों को जोड़,
बोल उठेगी तेरी आत्मा, टूटे को संभलने
में वक्त लगता है. ....
क्या सोच रहा भविष्य बारे,
भरोसा रख,
घटा जब छाई आसमां में, बरसने
में वक्त लगता है. .....
बहारें आई हैं और आती
रहेंगी चमन में,
इन्तजार कर, जेठ के बाद सावन
आने में, वक्त लगता है. .....
दाने-दाने को मोहताज है
आज, थोड़ा और उत्साह
बढ़ाकर देख,
बुरा वक्त छंटने में भी
वक्त लगता है।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 4, 2016 at 11:12am
आदरणीय सतविंदर भाई जी ये सब आप मित्रों का स्नेह है। हार्दिक आभार ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 8:45pm
वाह्ह्ह् आदरणीय सुरेश भाई जी,बहुत् उम्दा विचारों को शाब्दिक किया है आपने।हार्दिक बधाई।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 3, 2016 at 8:17pm
आदरणीय श्री अशोक कुमार रक्ताताले जी अपने सुन्दर विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक आभार।आप जैसे मित्रों का सहयोग बना रहे बस यही कामना है।
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 3, 2016 at 11:41am

आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी सादर, सुन्दर रचना हुई है. सच है हर  बात समय चाहती है. बहुत-बहुत  बधाई.सादर. 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 2, 2016 at 1:30pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर आभार । आपने जो मार्गदर्शन किया है सिरोधार्य है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:25pm

आदरनीय सुरेश भाई , बहुत अच्छी वैचारिक रचना हुई है , हार्दिक बधाई आपको ।

गुस्से को खुशी में बदलने
में वक्त लगता है......        क्या  खुशी के स्थान मे शांति कहना उचित नही होगा ,? अर्थात --

गुस्से को शांति में बदलने
में वक्त लगता है......           ग़ुस्से के कांट्रास्ट मे खुशी सही नही लग रहा है । सोचियेगा

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