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212 212 212 212
वो बहुत खुश है ‘उल्लू’ बनाकर मुझे
और तस्कीं है अहसाँ जताकर मुझे

करते हो फल की उम्मीद ऐ जान तुम*
रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे

कोयले की दहकती हुई आँच पर
रख दिया काँटों में से उठाकर मुझे

अपने अह्सान के बोझ को लादकर
मार तो डाला आखिर बचाकर मुझे

रोज़ बेचैनियाँ ही मिलीं रू-ब-रू
खुद को सारे जहाँ से छुपाकर मुझे

तस्कीं- संतोष

*फल की उम्मीद करते हो नादान तुम
साथ इच्छाओं के यूँ दबाकर मुझे

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 10:57am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय डॉ आशुतोष जी

Comment by मनोज अहसास on July 15, 2016 at 1:41pm
आदरणीय शकूर साहब
बहुत बहुत शुभकामनायें
इस खुब सूरत ग़ज़ल के लिए
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2016 at 7:47pm

  वाह शिज्जू भैया बढ़िया ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद कुबूलें 

अपने अह्सान के बोझ को लादकर
मार तो डाला आखिर बचाकर मुझे---मार  डाला है आखिर बचाकर मुझे  ---कर लीजिये 

Comment by Sushil Sarna on July 14, 2016 at 2:41pm

करते हो फल की उम्मीद ऐ जान तुम
रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे

कोयले की दहकती हुई आँच पर
रख दिया काँटों में से उठाकर मुझे

वाह आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब ... इस खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं।

Comment by Samar kabeer on July 14, 2016 at 12:40pm
जनाब शिज्जु शकूर साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
"रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे"
आप कहना चाहते हैं कि तमन्नाओं के साथ रेत में दबाकर,लेकिन 'ऐन'का स्वर 'य'नहीं 'अ'होगा देखिएगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2016 at 11:58am

आ. शिज्जु भाई , बढ़िया गज़ल कही  है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 14, 2016 at 11:22am
अति सूंदर आदरणीय शिज्जु जी ढेर सारी बढ़ाई स्वीकार करें सादर

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