For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हे! जगदीश! सुनो विनती

'मत्तगयन्द सवैया'

हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे मग, दर्शन को तव साँझ-सकारे।
कौन भला जग में तुम्हरे बिन, संकट से प्रभु ! मोहि उबारे?
आय करो उजियार प्रभो ! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।1।।

'दुर्मिल सवैया'

जय हे जगदीश! कृपा करके, कर आय प्रभो! मम शीश धरो।
तुम मूरत बुद्धि-दया-बल के, सदबुद्धि-दया-बल दान करो।
शुचि ज्ञान-प्रकाश बहा प्रभु हे ! मन के तम-पाप-प्रमाद हरो।
हर लो हर दुर्बलता हिय के, उर धीरज-साहस-शक्ति भरो।।2।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 15, 2016 at 10:51pm

बहुत ही सुन्दर आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 11:10am

आदरणीय राम बली भाई , दोनो सवैया बहुत सुन्दर लगा , अच्छी रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by रामबली गुप्ता on June 13, 2016 at 7:21pm
सराहना और सुझाव के लिए हृदय से आभार आद0 सौरभ जी
Comment by रामबली गुप्ता on June 13, 2016 at 7:20pm
रचना पर भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आद0 सुशील सरना जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 13, 2016 at 3:18pm

दोनों सवैया छन्द नियमानुसार गणों के संतुष्ट करते हुए हैं. हार्दिक बधाई. 

क्या आप सवैया छन्द की भाषा को खड़ी रखते हुए, रचनाकर्म कर सकते हैं ? प्रयास कर देखिये. 

शुभेच्छाएँ

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 2:36pm

 आदरणीय रामबली गुप्ता जी भक्ति रस में डूबे आपके ये 'मत्तगयन्द सवैया' और दुर्मिल सवैया' बहुत ही सुंदर और संदेशप्रद सृजित हुए हैं।  हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service