For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुत्ता [लघु कथा ]

सुबह सुबह सिंह साहब का ड्राईवर कल्याण ,शर्मा  जी के घर आया I

“सर, आप नगरपालिका में हैं ना , जानवर उठाने वाली गाड़ी के लिए फोन कर दीजिये मेहरबानी करके” I

“क्या हुआ “?

“वो सीज़र”  कल्याण का गला भर आया  “आज सुबह चल बसा “I

सीज़र सिंह साहब का एल्सेशियन कुत्ता था I सिंह साहब रोज़ उसे घुमाने ले जाते थे और उसी दौरान शर्मा जी की उनसे थोड़ी बहुत जान पहचान हो गई थी I आधे घंटे के प्रातः भ्रमण में , सिंह साहब के पास  बातों का विषय, ज़्यादातर  सीज़र ही होता था I कभी कभी शर्मा जी को कोफ़्त भी होती थी, उनका कुत्ता प्रेम देखकर I सीज़र से वो अंग्रेजी में लाड दुलार से ऐसे बातें करते थे जैसे अपने बच्चे से कर रहे हों I

“ साहब कहाँ हैं तुम्हारे? घूमते हुए दिखते  भी नहीं हैं आज कल “I

“वो तो चले गए ना दिल्ली ,यहाँ की नौकरी छोड़कर I  वहां बहुत बड़ी नौकरी मिल गई है “I

“सीज़र को तुम्हारे पास छोड़ गए “? आश्चर्य हो रहा था शर्मा जी को I

“ ये छोटा शहर है न सर I कम्पनी ने बंगला नौकर  गाड़ी सब दिए थे I  जानवर आसानी से पल गया  Iबड़े शहर में पैसा ज्यादा है, पर ये सब आराम कहाँ  “I

“सीज़र बीमार था क्या”? शर्मा जी ने धीरे से कल्याण के कंधे पर हाथ रख दिया I वो भी कहीं अन्दर भीगा हुआ महसूस कर रहे थे I

“साहब जब से गए , इसने खाना पीना छोड़ दिया था “ कल्याण सुबकने लगा था   “साहब तो वहां जाकर रम गए ,पर ये नहीं  भूल पाया उन्हें... कुत्ता था  ना” I  

मौलिक व् अप्रकाशित      

Views: 1600

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2016 at 5:25pm

बहुत मार्मिक प्रस्तुति अक्सर ऐसा देखने सुनने को बहुत मिलता है मेरा तो यही कहना है यदि सिर्फ दिखावे या शोक के लिए पालना है तो जानवर नहीं पालना चाहिए |जानवर की भावनाएं इंसानों की तरह ही होती हैं भावनात्मक लगाव हो जाता है जो हम इंसान नहीं समझते |

हार्दिक बधाई इस सुन्दर लघु कथा पर |

Comment by Janki wahie on June 4, 2016 at 4:51pm
वफ़ादारी की ऐसी मिसाल कहाँ? कुत्ता था ना।मार्मिक और इंसानियत पर चोट करती कथा।बधाई प्रतिभा जी
Comment by Abha Chandra on June 4, 2016 at 4:45pm

वाह वाह बहुत ही सुन्दर कथा
पर ये नहीं भूल पाया उन्हें... कुत्ता था ना” I
क्या सटीक कहा है बहुत सुन्दर आ. प्रतिभा पांडेय जी

Comment by Pawan Kumar on June 4, 2016 at 3:44pm

जानवर और स्वार्थी इन्सान के बीच के फर्क को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।
आदरणीया, हार्दिक बधाई!

Comment by Sushil Sarna on June 4, 2016 at 1:35pm

“साहब जब से गए , इसने खाना पीना छोड़ दिया था “ कल्याण सुबकने लगा था “साहब तो वहां जाकर रम गए ,पर ये नहीं भूल पाया उन्हें... कुत्ता था ना” I
बहुत खूब आदरणीया प्रतिभा जी ... स्वार्थी इंसानियत,और घायल वफादारी को आपने बड़ी ही मार्मिकता से उजागर किया है। इस मार्मिक लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by pratibha pande on June 4, 2016 at 9:14am

कथा पर उपस्थित होकर आपने उसके मर्म को समझा और अनुमोदन किया ,आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by pratibha pande on June 4, 2016 at 9:10am

सच कह आपने राहिला जी ,जानवर की वफादारी के आगे की इंसान की कृतिम भावनाओं  का कोई मेल नहीं ,  रचना के मर्म का अनुमोदन करने के लिए आपका तहे दिल से आभार प्रिय राहिला जी  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 4, 2016 at 7:26am
बड़े शहर में माँ-बाप को साथ में रख पाते नहीं, रिश्तेदारों का आना बर्दाश्त कर पाते नहीं, पालतू जानवर को क्या रखेंगे? इस तरह की घटनाएँ कुत्तों के अलावा तोतों के साथ भी सुनी गई है। तहे दिल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी इस बेहतरीन अनुपम भाव पूर्ण संदेश वाहक प्रस्तुति के लिए।
Comment by pratibha pande on June 3, 2016 at 10:30pm

 उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,    ' नहीं'  को 'नहिं,' लिखने की त्रुटी हुई है  जो बिल्कुल नहीं होनी  चाहिए ,  अभी ठीक करती हूँ  I

Comment by Rahila on June 3, 2016 at 10:23pm
ये जानवर तो वैसे भी बहुत मुहब्बती और वफादार होता है इसका इंसान से कोई मेल नहीं । बहुत बढ़िया रचना आदरणीया दीदी! बहुत बधाई आपको । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service