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गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये

२१२२    १२१२    २२/112

गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये 

सारा पानी शराब हो जाये 

उसके वालिद को देख इश्क मेरा 

हड्डी वाला कबाब हो जाये

क्या जरूरत है खोलने की लब 

जब नजर से जबाब हो जाये

मेरी नजरों के रुख पे पड़ते ही

हाथ उसका नकाब हो जाये

साथ उनके गुजारे जो लम्हे

लिख सकूँ तो किताब हो जाये

साक़िया बात कल की कल होगी

आज का तो हिसाब हो जाये

आज जीभर पिला मुझे साकी

आशु मुफलिस नवाब हो जाये  

.

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 4:29pm

आदरणीय रामबली जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 4:29pm

प्रिय जान भाई ..रचना को आपका स्नेह मिला इसके लिए ह्रदय से धन्यवाद स्वीकार करें सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 4:28pm

आदरणीय श्याम जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से हौसला मिलता है ..सादर धन्यवाद के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 4:10pm

आदरणीय सुशील जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 4:09pm

आदरणीय समर कबीर सर .आप अपना बहुमूल्य समय हमें देते हैं और आपके मशविरे से हमारी दृष्टी को पैनापन मिलता है .आपके सुझाव के अनुरूप परिवर्तन कर रहा हूँ ..मतले के बारे में परामर्श देने का कष्ट करें ताकि इसे ठीक किया जा सका मैं आपके इशारे को पूरी तरह समझ नहीं पा रहा हूँ सादर प्रणाम के साथ

Comment by Shyam Narain Verma on May 17, 2016 at 3:50pm
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई
Comment by Sushil Sarna on May 17, 2016 at 3:46pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही सुंदर अशआर लिखे हैं आपने। इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर। 

Comment by रामबली गुप्ता on May 17, 2016 at 2:56pm
सभी शेर अच्छे हैं आदरणीय दिली दाद कुबूल फरमाएं
Comment by Samar kabeer on May 17, 2016 at 2:46pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,ग़ज़ल अभी कुछ और समय चाहती है ।
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।
तीसरे शैर के ऊला मिसरे के आख़री शब्द'लव'को "लब"कर लें ।
पांचवे शैर का सानी मिसरा लय में नहीं है, सुझाव:-
"लिख सकूँ तो किताब हो जाये"
बाक़ी अशआर ठीक हैं,इस प्रस्तुति के लिये बधाई ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 1:12pm
वाह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह् आ. आशुतोष सर बेहतरीन ग़ज़ल शेर दर शेर दाद पेश है।इन दो शेर क लिए विशेष रूप से दाद कबूल फरमाएं।

साथ उनके गुजारे जो लम्हे
लिख दूं तो किताब हो जाये

साक़िया बात कल की कल होगी
आज का तो हिसाब हो जाये

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