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धर्म का ग्राफ / कविता

मन्दिर में मूर्ति का
रंग बदल रहा है
धर्मवर्धन के लिए
कर्म का ग्राफ भी बदल रहा है
धर्मानुयायी अपने - अपने चीथड़े उतार
मंदिर के चारों ओर टाँग कर
धर्म -कांड में लीन हो गये है
अब मटमैले मंदिर में 
पाप की मटियाली छायाएँ
चूने के पानी-सी  बुदबुदाती 
मंदिर के चेहरे से  धीमे - धीमे
उतर रही है ,टप ,टप ,टप .....

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by बशर भारतीय on May 24, 2016 at 4:54pm
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है बधाई आपको
Comment by pratibha pande on May 22, 2016 at 9:45pm

पाप की मटियाली छायाएँ
चूने के पानी-सी  बुदबुदाती .....' चूने का पानी अपनी अन्दर की  गर्मी धीरे धीरे बुदबुदों में छोड़ता,है ,पाप भी ऐसे ही सर उठाता है धीरे धीरे , एक अलग ही अंदाज़ में दिखी आपकी ये रचना ,बिम्बों को बार बार उलट पलट कर पढ़ रही हूँ ,अर्थ और भी गूढ़ होते जा रहे हैं ,हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको इस रचना पर आदरणीया कांता जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2016 at 9:37pm

बड़ा ही सांकेतिक चित्रण है . अनुशंसा तो बनती है आदरणीया

Comment by Rahila on May 19, 2016 at 11:26am
बहुत सुन्दर लाजवाब रचना आदरणीया कांता दी! सादर
Comment by Shyam Narain Verma on May 19, 2016 at 10:46am
लाजवाब रचना है बहुत बहुत बधाई आपको सादर ,
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 19, 2016 at 10:26am
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणिया कांता राय जी बधाई स्वीकार करें
Comment by Samar kabeer on May 18, 2016 at 2:42pm
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on May 17, 2016 at 11:10pm

वाह! कविता पसंद आई। अच्छी रचना के लिए आपको बधाई। 

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