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ग़ज़ल कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे

1222   1222     1222     1222
हमें अब याद आते हैं सुहानी शाम के चर्चे
तुम्हारी बज़्म की बातें तुम्हारे नाम के चर्चे

सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे

लिये बैठा हूँ नम आँखें अधूरा प्यार का किस्सा 

कभी मजनू कभी राँझे कभी खय्याम के चर्चे

किसी ने राग जो छेड़ा घुली खुशबू हवाओं में

दुआओं में महक जाते दिले गुमनाम के चर्चे

जलाये जा रहा कोई दिया दिल के दरीचे में
जिगर पे ज़ख्म भी खाये हुये अन्जाम के चर्चे

नहीं है भूलना मुमकिन जुदाई का वो अफ़साना 
सुनाई दे रहे हर सिम्त सूनी बाम के चर्चे

यही तो बात ऐसी है जुदा हस्ती हमारी में
वहाँ हक्काम की बातें यहाँ पे आम के चर्चे

मौलिक एवं अप्रकाशित 

©बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 17, 2016 at 12:19am

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय gumnaam pithoragarhiजी....जी हाँ रादीफेन दोष है लेकिन उसे दूर करता हूँ तो लय बिगड़ जाएगी आप कोई अच्छा सुझाव दें तो आभारी रहूँगा....

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 10, 2016 at 1:33pm

वाह खूब . अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .......... एक दो शेर में रादीफेन का दोष है ..........................

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 6, 2016 at 11:30pm

मनमोहक शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद आदरणीया  amita tiwari जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 6, 2016 at 11:27pm

रचना पटल पे आपका स्वागत है आदरणीया rajesh kumari जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 6, 2016 at 11:26pm

आपका कोटि कोटि वन्दन अभिनन्दन आदरणीय रामबली गुप्ता जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 6, 2016 at 11:25pm

रचना की सार्थक समीक्षा के लिए आपका कोटि कोटि वन्दन अभिनन्दन आदरणीय Samar kabeer ....जी हाँ दोष तो है लेकिन अगर दोष दूर करता हूँ  तो अशआर में मजा नहीं आएगा...आप कोई अच्छा सुझाव दें तो आपका आभारी रहूँगा 

Comment by Samar kabeer on April 6, 2016 at 6:39pm
जनाब बृजेश जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
तीसरे शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष आगया है ।
आख़री शैर के ऊला मिसरे में अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त नहीं,देखिएगा ।
Comment by रामबली गुप्ता on April 6, 2016 at 2:01pm
क्या बात है आद. ब्रजेश जी
सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे।
वाकई लाजबाब। दिली दाद कुबूल फरमाएं।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2016 at 10:30am

बहुत  सुन्दर ग़ज़ल दिल से दाद हाजिर है 

Comment by amita tiwari on April 6, 2016 at 12:42am

हीर राँझा,, राधा .... खूबसूरत   खूब सुन्दर रचना 

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