For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुनगुनाऊँ मैं- ग़ज़ल (पंकज)

1222 1222 1222 1222

सदा खामोश रहने से है बेहतर गुनगुनाऊँ मैं।
कभी खुद की कभी औरों की ख़ातिर मुस्कुराऊँ मैं।।

ग़मों के नीर से दुनिया तो वैसे ही लबालब है।
बताओ क्यों भला आँखों से दरिया इक बहाऊँ मैं।।

रुलाने के लिए कारण बहुत सारे हैं राहों में।
अभीप्सा है कि रोते मन को भीतर तक हंसाऊँ मैं।।

नहीं मालूम हूँ कितना सफल मैं इस प्रयोजन में।
बिना फल की किये चिंता करम करता ही जाऊँ मैं।।

हाँ इतना तो है तय लोगों के भावों तक पहुंच मेरी।
तुम्हारे उसके सबके मन को कागज़ पर सजाऊँ मैं।।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 685

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 18, 2016 at 12:06am
आदरणीय मिंटू जी सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 18, 2016 at 12:04am
आदरणीय मनोज भाई बहुत बहुत आभार, काफी दिनों बाद ओबीओ पर?
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 18, 2016 at 12:04am
आदरणीय अमित जी सादर धन्यवाद।
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on February 12, 2016 at 11:02pm

पंकज साहेब ...............बढ़िया है | बधाई 

Comment by मनोज अहसास on February 11, 2016 at 5:48pm
बहुत खूब मित्र
सादर
Comment by Amit Tripathi Azaad on February 11, 2016 at 5:44pm

आदरणीय पंकज जी " ग़मों के नीर से दुनियां  तो वैसे ही लबालब है " क्या बात है  बहुत  ही सकारात्मक सोंच  वाली ग़ज़ल के लिए  हार्दिक बधाई |

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 11, 2016 at 5:19pm
आदरणीय तेजवीर सर तथा श्याम नारायण सर ग़ज़ल की तारीफ करके हौसला बढ़ाने के लिए सादर धन्यवाद
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 11, 2016 at 5:16pm
आदरणीय मिथिलेश सर आपके सुझावों के अनुरूप आखिरी शेर में "काफ़िया" दोष दूर कर दिया है।

आदरणीय जयनीत भाई आपके सुझावों के अनुरूप संशोधन कर दिया गया है।
Comment by Shyam Narain Verma on February 11, 2016 at 4:24pm
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2016 at 1:36am

आदरणीय पंकज जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. मिसरे थोड़ा थोड़ा सा समय मांग रहे हैं. आखिरी शेर में 'उतारूँ ' काफ़िया कहाँ से आ गया आऊँ-आऊँ काफियाबंदी में....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service