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बिचार (छुआ-छूत विषयाधारित कथा)

मेज पर कहीं से परोसा आया रखा था..
“ये कहाँ से आया अम्मा?” भोजन सूघतें हुए मयंक ने पूछा.
“अरे वो पड़ोस से आया है सेठ जी की बरसी थी ना..”माँ ने बताया.
“मैं खा लूँ?”मयंक ने पूछा.
माँ के उत्तर देने से पहले दादी बोल उठी,
“राम राम, ‘उन लोगों’ के घर का खायेगा जिनके यहाँ आज भी जूते गांठे जाते हैं.”
“दादी उनके यहाँ लघु-उद्योग कारखाना है जूते नहीं गांठे जाते.”
मंयक ने खाना परोसते हुए कहा.
“तो क्या
? पीढ़ियों से जूते सीते-गांठते चले आ रहे हैं वही काम कर रहे हैं जो उनका है.. उद्योग बड़ा..” दादी ने बुदबुदाते हुए कहा..
मुँह में पहला निवाला रखते ही मंयक ने माँ और बहन को भी बुला लिया “आओ  तो माँ..अरे तू भी खा के देख  क्या स्वादिष्ट खाना हैं..कहते हुए बहन के मुँह मे कौर डाल दिया.
“खाना सच में बहुत स्वादिष्ट है” बोल तीनों खाने पर टूट पड़े. जी भर खाने के बाद मिठाई की बारी आई...  अब तो दादी का भी सब्र जाता रहा 
“मीठे मे क्या है ?”
“गुलाब-जामुन,गाजर का हलवा और पिन्नी है आप खायेंगी माँजी ?”
“हाँ ला एक मिठाई खिला तो मीठे का कोई बिचार नहीं होता हैं.”

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 23, 2016 at 7:10pm

प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी ' की याद आ गयी . सादर. 

Comment by Seema Singh on January 21, 2016 at 11:15pm
आप सब का ह्रदय से आभार .. आ० भंडारी जी मेरा नाम सीमा है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2016 at 9:46pm

आदरणीया मीना जी , बढिया लगी आपकी लघुकथा । कड़वा थू थू मीठा गप गप । हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 8:49pm

आदरणीया सीमा जी बहुत बढ़िया लघुकथा है... इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आपको 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 20, 2016 at 4:56pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Samar kabeer on January 20, 2016 at 2:05pm
मोहतरमा सीमा सिंह जी आदाब,इस शानदार प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें |
Comment by PHOOL SINGH on January 20, 2016 at 11:56am

बहुत बढ़िया रचना है ,बधाई स्वीकारें

Comment by pratibha pande on January 20, 2016 at 11:46am

भई वाह ,क्या सही पकड़ा है दादी को Iबहुत बढ़िया रचना है ,बधाई स्वीकारें सीमा जी 

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