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गज़ल - ग़म किसी का किसी की राहत है - गिरिराज भंडारी

2122  1212   22  /112

क्या नहीं ये अजीब हसरत है ?

ग़म किसी का किसी की राहत है

 

ख़ाक में हम मिलाना चाहें जिसे

उनको ही सारी बादशाहत है

 

रोटी कपड़ा मकान में फँसकर

बुजदिली, हो चुकी शराफत है

 

हर्फ करते हैं प्यार की बातें

आँखें कहतीं हैं, तुमसे नफरत है

 

मुज़रिमों को मिले कई इनआम

आज मजलूम की ये क़िस्मत है

 

बेरहम क़ातिलों को मौत मिली

सेक्युलर कह रहे , शहादत है

 

हाँ, ख़ुदा भी कहीं पे है लेकिन  

देश हित ही सही इबादत है

 

आइना हो के भी तू  है पत्थर

अब अयाँ तो तेरी भी सूरत है   

***************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by gumnaam pithoragarhi on December 28, 2015 at 9:05pm

वाह बहुत खूब है सर वाह ...............

Comment by Neeraj Neer on December 28, 2015 at 8:40pm

वाह बहुत उम्दा ॥ 

Comment by Manan Kumar singh on December 28, 2015 at 5:46pm
दिल को छूते शेर हैं
आपके हर्फ़ दिलेर हैं,
इतना ही कहूँगा आदरणीय गिरिराज भाई,सादर।
Comment by जयनित कुमार मेहता on December 28, 2015 at 2:13pm
परिस्थिति की विडम्बना को करारा चांटा है आपकी ये ग़ज़ल।
बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय भंडारी जी।।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2015 at 9:39pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 8:54pm

हर्फ करते हैं प्यार की बातें

आँखें कहतीं हैं, तुमसे नफरत है-------------वाह अनुज ,बहुत खूब . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2015 at 8:27pm

आदरणीय सतविंदर भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2015 at 8:27pm

आदरनीय जय प्रकाश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2015 at 8:26pm

आदरनीय तस्दीक भाई , गज़ल अप्र शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आपका कहना ग़लत नही है , आँख कहने से रवानी अच्छी आ रही है , लेकिन  आख दो होतीं है और दोनो एक साथ एक ही बात कहतीं है , इसलिये आँखें कहा  है , खें की मात्रा गिराया जाना विधान के अनुसार सही है । सलाह के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 27, 2015 at 8:02pm
हाँ, ख़ुदा भी कहीं पे है लेकिन
देश हित ही सही इबादत है


उम्दा भाव।बहुत बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज सर।

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