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बेरोजगारी / लघुकथा

कमरे में घुसते हुए वह अपनी चाल को संतुलित कर रहा था ,पर बैठते हुए थोडा़ लड़खड़ा गया ।

" आज इतनी देर कैसे कर दी आपने , कहाँ रह गये थे , खाना लगा दूँ ? " बाहर आॅफिस , घर में बेरोजगार पति , दोनों को ही काँच के बर्तन के समान संभालने की जिम्मेदारी भी वह बखूबी निभा रही थी कि आज ऐसे ....!

नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । अचानक वह सोफे पर ही लुढ़क गया । एक पल के लिए उसकी धड़कन जैसे रूक गई ।

" क्या आपने ड्रग लिया है ...? "

" हाँ " अधनींदे ही वह लड़खड़ाती आवाज में जबाव दिया ।

" लेकिन क्यों , आपको किस बात का गम , मै तो हूँ ना सब करने के लिए ! "

" इसलिए तो ...! तुम नहीं समझोगी कामयाब पत्नी के नाकामयाब पति का दर्द ....." कहते हुए फिर से एक ओर लुढ़क गया ।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2015 at 7:19pm

एक ज्वलंत समस्या को शाब्दाकार करने हेतु आपको बधाई . सादर.

Comment by savitamishra on October 29, 2015 at 8:09pm

अहम बचा रहें इसके लिय सच में बेरोजगार पति को काँच के बर्तन के समान ही संभालना होता | बढ़िया कथा दी

Comment by pratibha pande on October 29, 2015 at 5:03pm

'कांच के बर्तन की तरह सँभालने की ज़िम्म्म्मेदारी ' बेरोजगार पति की  मानसिक दशा की कांच के बर्तन से तुलना बहुत सटीक की है आपने आदरणीया , पुरुष अहम् होता ही ऐसा है , बधाई इस रचना पर आदरणीया कांता जी    

Comment by Rahila on October 29, 2015 at 1:01pm
आज के समय में व्यापक रूप से ये समस्या देखने को मिल रही है । लड़कियां तो पहले ही पढ़ाई के प्रति गंभीर रही है और अब नौकरी में आरक्षण की वजह से हर क्षेत्र में सेवायें दे रही है ।जिससे सीमित रोजगार होने से लड़कों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है । बहुत अच्छा विषय चुना आद. कांता दी । बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:46pm

आदरणीया कांता जी, आपने आज समाज में उपजी एक नई समस्या को बहुत सधे ढंग से शाब्दिक किया है. माता पिता अपने बेरोजगार बेटे के लिए नौकरीशुदा बहू इस आशा में लाते है कि आगे चलकर बेटा भी थोड़ा बहुत कमाने लगेगा और दोनों का जीवन बढ़िया चलेगा. लगभग ऐसी ही उम्मीद में बेटी के माता पिता भी ऐसा विवाह कर देते है क्योकि भारत के समाज में बेटी की शादी करना क्या होता है इससे सभी वाकिफ़ है. किन्तु इस विवाह के जो भयावह परिणाम सामने आते है ये आपकी लघुकथा में बखूबी उभरकर आया है. आपने कथ्य के मर्म को बहुत ही सधे ढंग से शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

एक निवेदन यदि उचित लगे तो-

//नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । // आगे आप पति के लिए उसका संबोधन प्रयोग कर रही है इसलिए मुझे लग रहा है कि वाक्य ऐसा होना चाहिए-

//नजदीक जाकर गौर से देखा, तो उसकी आँखें लाल हो रही थी । //

सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 12:05pm
कामयाब पत्नी के नाकामयाब पति का दर्द का मूल कारण सब तरफ से पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक दवाब होता है, जिसके लिए पति की हीन भावना अकेले ज़िम्मेदार नहीं होती, बल्कि पत्नी ,परिवारजन , मित्र परिचितों की कड़वी ज़ुबान भी। ऐसे में यदि पत्नी वाणी संयम का परिचय देते हुए पति को हीन भावना के दलदल से यथा शीघ्र निकाल सके, तो पति को पतन से, नशे के सेवन से बचाया जा सकता है। पुरुष की बेरोज़गारी आज भी समाज में एक अभिशाप ही है। बहुत समसामयिक सार्थक रचना के लिए आदरणीया कान्ता राय जी को बहुत बहुत हार्दिक बधाई।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 29, 2015 at 12:00pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बेहद मर्मस्पर्शी लघुकथा हुई है!

Comment by Ajay Kumar Sharma on October 29, 2015 at 11:45am

आदरणीय कान्ता जी लघु कथा बहुत अच्छी लगी।

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