For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेरोजगारी / लघुकथा

कमरे में घुसते हुए वह अपनी चाल को संतुलित कर रहा था ,पर बैठते हुए थोडा़ लड़खड़ा गया ।

" आज इतनी देर कैसे कर दी आपने , कहाँ रह गये थे , खाना लगा दूँ ? " बाहर आॅफिस , घर में बेरोजगार पति , दोनों को ही काँच के बर्तन के समान संभालने की जिम्मेदारी भी वह बखूबी निभा रही थी कि आज ऐसे ....!

नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । अचानक वह सोफे पर ही लुढ़क गया । एक पल के लिए उसकी धड़कन जैसे रूक गई ।

" क्या आपने ड्रग लिया है ...? "

" हाँ " अधनींदे ही वह लड़खड़ाती आवाज में जबाव दिया ।

" लेकिन क्यों , आपको किस बात का गम , मै तो हूँ ना सब करने के लिए ! "

" इसलिए तो ...! तुम नहीं समझोगी कामयाब पत्नी के नाकामयाब पति का दर्द ....." कहते हुए फिर से एक ओर लुढ़क गया ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2015 at 7:19pm

एक ज्वलंत समस्या को शाब्दाकार करने हेतु आपको बधाई . सादर.

Comment by savitamishra on October 29, 2015 at 8:09pm

अहम बचा रहें इसके लिय सच में बेरोजगार पति को काँच के बर्तन के समान ही संभालना होता | बढ़िया कथा दी

Comment by pratibha pande on October 29, 2015 at 5:03pm

'कांच के बर्तन की तरह सँभालने की ज़िम्म्म्मेदारी ' बेरोजगार पति की  मानसिक दशा की कांच के बर्तन से तुलना बहुत सटीक की है आपने आदरणीया , पुरुष अहम् होता ही ऐसा है , बधाई इस रचना पर आदरणीया कांता जी    

Comment by Rahila on October 29, 2015 at 1:01pm
आज के समय में व्यापक रूप से ये समस्या देखने को मिल रही है । लड़कियां तो पहले ही पढ़ाई के प्रति गंभीर रही है और अब नौकरी में आरक्षण की वजह से हर क्षेत्र में सेवायें दे रही है ।जिससे सीमित रोजगार होने से लड़कों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है । बहुत अच्छा विषय चुना आद. कांता दी । बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:46pm

आदरणीया कांता जी, आपने आज समाज में उपजी एक नई समस्या को बहुत सधे ढंग से शाब्दिक किया है. माता पिता अपने बेरोजगार बेटे के लिए नौकरीशुदा बहू इस आशा में लाते है कि आगे चलकर बेटा भी थोड़ा बहुत कमाने लगेगा और दोनों का जीवन बढ़िया चलेगा. लगभग ऐसी ही उम्मीद में बेटी के माता पिता भी ऐसा विवाह कर देते है क्योकि भारत के समाज में बेटी की शादी करना क्या होता है इससे सभी वाकिफ़ है. किन्तु इस विवाह के जो भयावह परिणाम सामने आते है ये आपकी लघुकथा में बखूबी उभरकर आया है. आपने कथ्य के मर्म को बहुत ही सधे ढंग से शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

एक निवेदन यदि उचित लगे तो-

//नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । // आगे आप पति के लिए उसका संबोधन प्रयोग कर रही है इसलिए मुझे लग रहा है कि वाक्य ऐसा होना चाहिए-

//नजदीक जाकर गौर से देखा, तो उसकी आँखें लाल हो रही थी । //

सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 12:05pm
कामयाब पत्नी के नाकामयाब पति का दर्द का मूल कारण सब तरफ से पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक दवाब होता है, जिसके लिए पति की हीन भावना अकेले ज़िम्मेदार नहीं होती, बल्कि पत्नी ,परिवारजन , मित्र परिचितों की कड़वी ज़ुबान भी। ऐसे में यदि पत्नी वाणी संयम का परिचय देते हुए पति को हीन भावना के दलदल से यथा शीघ्र निकाल सके, तो पति को पतन से, नशे के सेवन से बचाया जा सकता है। पुरुष की बेरोज़गारी आज भी समाज में एक अभिशाप ही है। बहुत समसामयिक सार्थक रचना के लिए आदरणीया कान्ता राय जी को बहुत बहुत हार्दिक बधाई।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 29, 2015 at 12:00pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बेहद मर्मस्पर्शी लघुकथा हुई है!

Comment by Ajay Kumar Sharma on October 29, 2015 at 11:45am

आदरणीय कान्ता जी लघु कथा बहुत अच्छी लगी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service