For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम इसे तवज्जो न देना........

तुम इसे तवज्जो न देना ....


ये बादे सबा अगर
तुम्हें मेरे दर्द का पैगाम दे जाये
तो अपने ज़हन में
करवटें लेते खुशनुमा अहसासों पर
तुम तवज्जो न देना

किसी तारीक शब को
अब्र से झांकता माहताब
पीला नज़र आये
तो तन्हाई से गुफ़्तगू करती
मेरी खामोशियों पर
तुम तवज्जो न देना

सड़क पर चलते
तुम्हारे पाँव के नीचे
कोई ज़र्द पत्ता चीखे
तो गर्द में डूबे
मेरी मुहब्बत के
बदलते मौसम पर
तुम तवज्जो न देना

हाँ इक गुजारिश है तुमसे
जब मैं जहां से रुख़्सत हो जाऊं
मेरी लहद पर
मुझसे मिलने ज़रूर आना
मेरे अधूरे अनमानों को
चराग़े मुहब्बत से
रोशन कर जाना
मेरे सफर का आगाज़ तुम थे
अब इसे एक खूबसूरत
अंजाम भी दे जाना
जिस्म न सही
रूह तो हर लम्हा तुम्हारे साथ रहेगी
बस मेरी आखिरी इल्तिज़ा है तुमसे
मैं नहीं हूँ
तुम इसे तवज्जो न देना

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 15, 2015 at 3:08pm

आदरणीया  मिथिलेश वामनकर जी रचना में निहित भावों पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 1:16pm

आदरणीय सुशील सरना सर बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 1:18pm

आदरणीया गिरिराज भंडारी  जी रचना में निहित भावों पर आपकी आत्मग्राही प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। आपने सही पहचाना टंकण त्रुटि से अरमानों के स्थान पर अनमानों हो गया ,इस और ध्यान आकर्षित करना का हार्दिक आभार। कृपया इसे अरमानों ही पढ़ें। आपके तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 1:14pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 1:13pm

आदरणीया प्रतिभा जी रचना के मनोभावों ने आपको प्रभावित किया मेरा प्रयास सफल हुआ।  आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। नेट व्याधान से आभार व्यक्त नहीं कर पाया , क्षमा चाहूंगा। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2015 at 1:01pm

आदरनीय सुशील सरना जी , बहुत भाव पूर्ण हृदय ग्राही लगी आपकी रचना ! दिल से बधाइयाँ ।

मेरे अधूरे अनमानों को   -- शायद आप अरमानों कहना चाहते हैं ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2015 at 10:42am

वाह  वाह.....  आ० सुशील सरना जी,उर्दू के बेहतरीन शब्दों को भावों के साथ बखूबी गूँथा गया दिल छू गई ये प्रस्तुति बहुत खूब दिल से बधाई स्वीकारें | 

Comment by pratibha pande on October 2, 2015 at 6:04pm

 'तुम इसे तवज्जो न देना 'सारी रचना प्रतिबिम्ब है इस एक गहरी पंक्ति का ,खूबसूरत बनी है पूरी रचना ,आपको ढेरों बधाई आदरणीय सुशीलजी 

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2015 at 4:44pm

आदरणीय   डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी'  जी  रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by कंवर करतार on October 1, 2015 at 1:48pm

'सरना' साहिब ,खूबसूरत कविता के लिए बहुत बहुत बधाई I

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
9 minutes ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service