For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नाम काफ़ी है किसी का,सिर झुकाने के लिये (ग़ज़ल)

(2122 2122 2122 212)

आज फिर आये वो मुझको आज़माने के लिये..

क्या मिले हम ही थे उनको दिल दुखाने के लिये..

-

बात से फ़िर जाएँगे,ये सोच भी कैसे लिया,

सर कटा देंगे, दिया वादा निभाने के लिये..

-

ये शिकन माथे पे मेरे,बेवजह ही है सही,

कुछ तो कारण चाहिये ना, मुस्कुराने के लिये..

-

थे भरे संदूक वो,शैतान सब धन खा गये,

हो गये हैं आज वो,मुहताज दाने के लिये..

-

मंदिरों औ' मस्ज़िदों में 'जय' भटकना छोड़ दे,

नाम काफ़ी है किसी का, सिर झुकाने के लिये..

~

~

जयनित कुमार वर्मा

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 478

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 5, 2016 at 6:45pm
आप सब के प्रति हार्दिक आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 1:13pm

आदरणीय जयनित भाई जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 11:32am

बहुत ख़ूब! आ० जयनीत भाई!

हार्दिक बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 2, 2015 at 11:03am

आदरणीय जय्नित जी इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर

Comment by asha jugran on October 1, 2015 at 2:19pm

जयनित जी जय-जय ..बहुत सुन्दर.

Comment by Neeta Saini on September 30, 2015 at 8:08pm
बहुत खूब
Comment by Shyam Narain Verma on September 30, 2015 at 10:58am

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर

 सादर 

Comment by मनोज अहसास on September 29, 2015 at 4:16pm
बहुत खूब
आदरणीय जयनित जी
सादर
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2015 at 6:43pm

हार्दिक धन्यवाद आपका, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2015 at 10:13am

आदरणीय जयनित भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली मुबारकबाद आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service