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ग़ज़ल -- कोई रास्ता मिले ...( बराए इस्लाह ) .... दिनेश कुमार

221-2121-1221-212

मंज़िल मिले न मुझको कोई रास्ता मिले
सहरा-ए-ज़िन्दगी में फ़क़त नक्शे पा मिले

मरने से भी ग़ुरेज़ न मुझ जैसे रिन्द को
लेकिन ये हो कि मर के मुझे मयकदा मिले

क़ैद-ए-नफ़स से रूह जो आज़ाद हो मिरी
फिर उसको पैरहन न कोई दूसरा मिले

बेचैन हूँ मैं गर्मी-ए-अहसास-ए-हिज्र से
अब तो तुम्हारे प्यार की ताज़ा हवा मिले

पुरपेंच पुरख़तर है ये जीवन की रहगुज़र
अच्छा हो रहनुमा जो अगर आप सा मिले

तूफाँ की ज़द में आ गयी कश्ती हयात की
ढूंढे से भी न मुझको कोई नाखुदा मिले

नासूर बन रहे हैं मेरे ज़ख़्म-ए-दिल सभी
देंखे मुझे भी कब कोई दस्ते शिफ़ा मिले

जोश-ओ-जुनून जीने का कम हो रहा दिनेश
मुझको तो खुद से लड़ने का अब हौसला मिले

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by narendrasinh chauhan on September 9, 2015 at 6:18pm

मरने से भी ग़ुरेज़ न मुझ जैसे रिन्द को
लेकिन ये हो कि मर के मुझे मयकदा मिले  लाजवाब 

खूब सुन्दर रचना 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2015 at 5:51pm

बहुत ख़ूब आदरणीय दिनेश जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिए

Comment by shree suneel on September 8, 2015 at 10:10pm
बेचैन हूँ मैं गर्मी-ए-अहसास-ए-हिज्र से
अब तो तुम्हारे प्यार की ताज़ा हवा मिले.. व्वाहह! बहुत ख़ूब!
आदरणीय दिनेश जी, ख़ूबसूरत अशआर वाली इस ग़ज़ल के लिए आपको दिल से दाद.
Comment by Sushil Sarna on September 8, 2015 at 8:24pm

तूफाँ की ज़द में आ गयी कश्ती हयात की
ढूंढे से भी न मुझको कोई नाखुदा मिले

क्या बात है आदरणीय दिनेश जी लिखा और बहुत खूब लिखा .... खूबसूरत अहसासों के अशआर वाली इस खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति पर बन्दे की दिल से दाद कबूल फरमाएं।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 7:22pm
शानदार शानदार शानदार शानदार ...
आदरणीय दिनेश भाई जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है
मतला कमाल का
पहले शेर ने दिल लूट लिया
दुसरे शेर में मोक्ष को क्या खूब लफ्ज़ मिले है।
बाकी शेर भी एक से बढ़कर एक। दिल से दाद। ढेर सारी दुआ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2015 at 7:04pm
कमाल की ग़ज़ल है दिनेश भाई बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिये
Comment by मनोज अहसास on September 8, 2015 at 6:49pm
क़ैद-ए-नफ़स से रूह जो आज़ाद हो मिरी
फिर उसको पैरहन न कोई दूसरा मिले

बेचैन हूँ मैं गर्मी-ए-अहसास-ए-हिज्र से
अब तो तुम्हारे प्यार की ताज़ा हवा मिले

क्या बात है

बहुत खूब
बेहतरीन
सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 8, 2015 at 6:27pm
आदरणीय बहुत ही लाजवाब गजल हुई है २,३,४ वें शे'र तो कमाल के है बधाइयाँ

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