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ग़ज़ल - जैसे अपना बयान छोड़ गये ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212  112/22

ज़ख़्म  सूखे निशान छोड़ गये

जैसे अपना बयान छोड़ गये

 

लौट के यूँ गये मेरे दिल से

मानो ख़ाली मकान छोड़ गये

 

सारी खुश्बू हवायें ले के गईं  

ये भी सच है कि भान छोड़ गये

 

राग खुशियों के छिन्न भिन्न किये

मित्र, ग़मगीन तान छोड़ गये

 

उड़ गये जब परिंदे बाग़ों से

पीछे सब सून सान छोड़ गये 

 

हाले दिल क्या बयान कर पाते ?

हम से कुछ बे ज़ुबान छोड़ गये

 

खुद चढ़ाई चढ़े हैं वालिद , अब     

तिफ्ल खातिर ढलान छोड़ गये

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 2:39pm

हाले दिल क्या बयान कर पाते ?

हम से कुछ बे ज़ुबान छोड़ गये ... 

हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय गिरिराजभाईजी. 

Comment by ram shiromani pathak on September 6, 2015 at 1:01pm
वाह क्या कहने आदरणीय।।बधाई
Comment by मोहन बेगोवाल on September 4, 2015 at 10:30pm

 आदरनीय गिरिराज जी . इस  शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई कबूल करें 

Comment by मनोज अहसास on September 4, 2015 at 9:19am
नमस्कार सर
बहुत उम्दा ग़ज़ल
बेहतरीन
सूनसान कुछ अटपटा लग रहा है
शायद सून सान लिखने की वजह से
आपके आशिर्वाद और मार्गदर्शन की सदा चाह है
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2015 at 9:11am

आदरणीय हर्ष भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2015 at 9:10am

आदरणीया कांता जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2015 at 9:09am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2015 at 9:08am

आदरनीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2015 at 9:07am

आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

जहाँ तक सून सान की बात है , मै शब्द कोष मे देख कर ही लिखा हूँ --

शब्द कोष - आदर्श हिन्दी शब्द कोष - संशोधित संस्करण - पेज न. 788 , दूसरा कालम  का 11वाँ शब्द  । सूनसान  = निर्जन , सुनसान । दिया हुआ है । आप देख सकते हैं ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2015 at 9:02am

आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार । आपने सही कहा है , मुझे भी मालूम है , तकाबुले रदीफ दोष है कुछ शे र मे , लेकिन अभी दूर नही कर पा रहा हूँ प्रयास मे हूँ । आपका आभार ।

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