For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आरोह-अवरोह

कभी-कभी ... कभी कभी

आत्म-चेतन अंधेरे में ख़यालों के जंगल में

रुँधे हुए, सिमटे हुए, डरे-डरे

चुन रहा हूँ मानो अंतिम संस्कार के बाद

झुठलाती-झूठी ज़िन्दगी के फूल

और सौ-सौ प्रहरी-से खड़े  आशंका के शूल

दो टूक हुई आस्था की काँट-छाँट

अच्छे-बुरे तजुर्बे बेपहचाने

पावन संकल्प, पुण्य और पाप

पानी और तेल और राख

कितना कठिन है प्रथक करना

सही और गलत के तर्क से ओझल हो कर

कठिन है अपूर्णता के प्रश्नों के आलापों में

धोखों से भरे सपनों में

स्वयं से अजनबी बन कर, हट कर

स्वयं की साँसों में सुनना, सूनी-सूनी

दर्द भरी गई-गुज़री दुर्दान्त भावनाओं की

हृदयद्रावक अकुलाहट रात भर

कठिन है बहुत

अंधेरे में औंधे मुँह, लिए गालों को हाथों में

निज घावों से जुड़े तुम्हारे घावों पर

रात की स्याही से मरहम लगाना, और

पहुँचाना तुम तक दिन में रवि-किरणों से

कल्पनाशील सुखद संवेदनाएँ

कभी-कभी ... कभी-कभी ...

टूटे आत्म-विश्वास के टुकड़ों का

विवेक-हीन सुबकना

अंतिम-दम-चीख़ों में पूछना मुझसे

था जो था, हुआ सो हुआ, जो हुआ

सब बनावटी था क्या ?

हाँ, तो उससे उभरी सूक्षम जीवन्त-पीड़ा

वह बनावटी क्यूँ नहीं 

वह नपुंसक क्यूँ नहीं 

अभी भी क्यूँ ...

आवर्त्ती ख़यालों के निर्जन प्रसारों में

आस्था के अधजले ठूँठ से उठता है धुआँ

बुनती है रात अनायास रहस्यमय तर्कों के जाल

अभी भी तुम्हारी याद के आते ही मेरे भीतर

काँपती है आसमानी बिजली

थरथराता है मेरा भोला विश्वास

-------

विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 788

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 30, 2015 at 10:56pm

//स्मृति और स्मृति में पीड़ा का मर्मान्तक पक्ष जिस खूबसूरर्तीसे आप की कविता में उभर कर आता है .....//

आदरणीय गोपाल नारायन जी, मिरज़ा ग़ालिब जी ने कहा न, दर्द का हद से बड़ जाना है दवा हो जाना ... 

मेरी लेखनी को आदर देने के लिए आपका शत-शत आभार, आदरणीय ।

Comment by vijay nikore on August 30, 2015 at 10:50pm

//कठोर , कठिन जीवन - सत्य के लहराते आँचल तले व्यग्र मन का फूल चुनना और मन को गिर कर उठाना , सम्भालना फिर संशय के घेरे में स्वंय को पाना । सच बहुत कठिन ये मन होता है //

आदरणीया कांता जी, रचना के मर्म को इतना समीप से छूने के लिए आपका हृदयतल से आभार।

Comment by vijay nikore on August 24, 2015 at 11:50am

//आपकी लेखनी ,कल्पनाशीलता और विचारों को प्रवाह देनी की अनूठी शक्ति … अंतर्मन के भावों को चित्रित करती//

आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय सुशील जी।

Comment by vijay nikore on August 24, 2015 at 11:47am

// अन्दर तक  हिला दिया ।बे मिसाल कविता //

रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by vijay nikore on August 22, 2015 at 11:28pm

आदरणीया राजेश जी,

//मर्म स्पर्शी  पंक्तियाँ  न जाने क्यूँ बरबस ये गीत याद आया ----किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार //..... अनाड़ी फ़िल्म का यह गीत मुझको भी बहुत प्रिय है, और दूसरों के प्रति मेरे निजि व्यवहार में मान्य रखता है।

//अपने आँसू छिपाकर दुसरे के आँसूं पौंछना  इतना आसान ह क्या ?// ... नहीं, यह कदाचित आसान नहीं है ... कभी-कभी ऐसा करते अपना मन छलनी हो जाता है, पर वह "दूसरा" इतना प्रिय होता है कि पूर्ण-निस्वार्थ से यह भी करना स्वीकार होता है। 

//आपकी रचनाएँ दिल में उतारकर बहुत कुछ सोचने पर विवश करती हैं जिसका असर गहरा होता है//

मेरी रचनाओं की उदार सराहना करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी।

Comment by vijay nikore on August 22, 2015 at 11:17pm

//आस्था और विश्वास के इर्द गिर्द जीवन के आरोह और अवरोह को बड़ी गहराई से शाब्दिक करते हुए एक वैचारिक रचना प्रस्तुत हुई है//

रचना के भाव के अनुमोदन के लिए आभारी हूँ, आदरणीय मिथिलेश जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2015 at 5:57pm

अभी भी तुम्हारी याद के आते ही मेरे भीतर

काँपती है आसमानी बिजली

थरथराता है मेरा भोला विश्वास------   तैतीस प्रकार के संचारी /व्यभिचारी भावो की यदि बात करें तो उनमे स्मृति और स्मृति में पीड़ा का मर्मान्तक पक्ष जिस खूबसूरर्तीसे आप की कविता में उभर कर आता है , उसके बाद तो मृत्यु ही निदान बचता है . आपकी लेखनी को पुनः प्रणाम .

Comment by kanta roy on August 21, 2015 at 7:38am
" थरथराता है मेरा भोला विश्वास ".... कठोर , कठिन जीवन - सत्य के लहराते आँचल तले व्यग्र मन का फूल चुनना और मन को गिर कर उठाना , सम्भालना फिर संशय के घेरे में स्वंय को पाना । सच बहुत कठिन ये मन होता है । बेहतरीन रचना आदरणीय विजय निकोर जी ,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on August 20, 2015 at 1:33pm

आवर्त्ती ख़यालों के निर्जन प्रसारों में
आस्था के अधजले ठूँठ से उठता है धुआँ
बुनती है रात अनायास रहस्यमय तर्कों के जाल
अभी भी तुम्हारी याद के आते ही मेरे भीतर
काँपती है आसमानी बिजली
थरथराता है मेरा भोला विश्वास

.... नमन सर आपकी लेखनी ,कल्पनाशीलता और विचारों को प्रवाह देनी की अनूठी शक्ति … अंतर्मन के भावों को चित्रित करती इस दिलकश प्रस्तुति के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय निकोर साहिब।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2015 at 7:02am

टूटे आत्म-विश्वास के टुकड़ों का

विवेक-हीन सुबकना

अंतिम-दम-चीख़ों में पूछना मुझसे

था जो था, हुआ सो हुआ, जो हुआ

सब बनावटी था क्या ?

हाँ, तो उससे उभरी सूक्षम जीवन्त-पीड़ा

वह बनावटी क्यूँ नहीं 

वह नपुंसक क्यूँ नहीं   ---  क्या बात है ,आदरणीय बड़े भाई , जिन शब्दों मे आपने टूटे दुये दिल का दर्द बयान किया है , अन्दर तक  हिला दिया ।बे मिसाल कविता के लिये आपको नमन ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
2 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service