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रंगीन छाता (लघुकथा)

"बेटा आज  तेरा जन्म दिन है ..मंदिर में पूजा करनी है , बाहर बूंदाबांदी है ..गाड़ी में मंदिर ले चलेगा ?" उसने कमरे के बाहर  से ही पूछा

"माँ i  जनम दिन भागा नहीं जा रहा है कहीं .. सोने दो , आज सन्डे है ...और आप भी ये खाली पेट  पूजा का नाटक छोड़ दो "

पीछे से बहू के भुनभुनाने की आवाज़ भी उसने साफ़ सुन ली थी

वो चुपचाप बाहर आ गई ,गाल में ढुलक आये आंसूओं को  उसने जल्दी से पोंछा और छाता ढूँढने  लगी

"चलो दादी मै चलता हूँ ,छाता भी है मेरे पास " अपना रंग बिरंगा बच्चों वाला छाता  लिए सात साल का पोता पीछे खड़ा था

उस पुराने  रंगीन छाते का रंग निकल रहा था , जैसे ही उसने छाता खोलना चाहा ... उसके हाथों और चेहरे पर  रंग लग गया    

"दादी देखो आपके फेस पर कलर लग गया " उससे चिपक कर खड़ा   पोता हंस कर चिल्लाया

उसने देखा, अचानक पोते के चेहरे पर  उसके बेटे का बचपन का चेहरा उग आया है,  बेटा भी बारिश में उससे ऐसे ही चिपककर चलता था

"हाँ  आज तो रंग गई तेरी दादी "

पता नहीं थके शरीर में कहाँ से जान आ गई..  उसने पोते को गोदी में उठाकर चूम लिया , बारिश रुक गई थी और अब आसमान साफ़ था

 

मौलिक व अप्रकाशित    

 

 

     

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2015 at 3:28pm

भावनात्मक अभिव्यक्ति केलिए हार्दिक बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 9, 2015 at 11:45am

अचानक पोते के चेहरे पर  उसके बेटे का बचपन का चेहरा उग आया है,  बेटा भी बारिश में उससे ऐसे ही चिपककर चलता था

"हाँ  आज तो रंग गई तेरी दादी "   ... आँखों देखी घटना जैसी प्रस्तुति लगी आपकी ऐसा भी होता है....बधाई आदरणीया प्रतिमा जी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 1:04pm

आदरणीय प्रतिभा जी ..इस मर्मस्पर्शी रचना के लिए ह्रदय से बधाई सादर 

Comment by विनय कुमार on August 6, 2015 at 3:00pm

वाह , बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण | बहुत बहुत बधाई इस शानदार लघुकथा के लिए आदरणीया प्रतिभा पांडे जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 6, 2015 at 1:28pm

भावुक कर देने वाली लघु कथा ....बेटी ,माँ ,दादी बस आशाओं को टूटते भी देखती हैं पुनह जीवित होते हुए भी देखती है ,फिर टूटते हुए देखती हैं बस इसी में जीवन पूर्ण हो जाता है .बहुत- बहुत बधाई प्रतिभा जी इस सुन्दर लघु कथा के लिए| 

Comment by Omprakash Kshatriya on August 6, 2015 at 7:18am
अपने स्वाभाविक प्रवाह के साथ सकारात्मक अंत लिए शानदार रचना आ प्रतिभा जी । बधाई ।
Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:24pm
वाकई कथा लाजवाब बन पडी है । आशा और निराशा का बहुत ही सुंदर रंग भरी प्रस्तुति हुई है । बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 9:35pm

आदरणीया प्रतिभा जी, बहुत सुन्दर कथानक में सधे कथ्य को शाब्दिक करती शानदार लघुकथा हुई है. लघुकथा सीधे दिल को छू गई. निराशाजनक शुरुआत के साथ कथ्य का प्रवाह पाठक को जोड़ते जाता है और आशा की किरण जिस मर्म से अभिव्यक्त होती है वो मर्म दिल को गहराई तक छू लेता है. एक सकारात्मक और मार्मिक अंत कथा को विशिष्ट बनाता है. इस बेहतरीन और लाजवाब प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on August 5, 2015 at 8:37pm
आदरणीय प्रतिभा जी, बहुत मार्मिक लघुकथा,हार्दिक बधाई!
Comment by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 7:39pm

सुंदर भावाभिव्यक्ति   … हार्दिक बधाई इस भावनामयी लघुकथा हेतु आदरणीया। 

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