For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं तकती हूँ राह मगर क्यूँ शाम नहीं आता © परी ऍम. 'श्लोक'

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २

उस हरजाई का कोई पैग़ाम नहीं आता
मैं तकती हूँ राह मगर क्यूँ शाम नहीं आता

करती है लाखों बातें आँखें उसकी मुझसे
जाने क्यूँ लब पे ही मेरा नाम नहीं आता

होगी कुछ सच्चाई तो कि धुआँ सा उठता है
यूँ ही तो सर पर कोई इल्ज़ाम नहीं आता

तुमसे उल्फ़त ने ही ये हाल किया है अपना
दिल की किस्मत में वरना शमशान नहीं आता

दूर खड़ा साहिल पर बेहिस तकता है मुझको
हो मुश्किल चाहे कुछ भी वो काम नहीं आता

ए इश्क़ तेरी बस्ती को कर ले गम से खाली
इन गलियो में भी दिल को आराम नहीं आता

कुछ दर्द जवां होकर तकलीफ़ बहुत देते हैं
यूँ ही तो हाथों में अपने ये जाम नहीं आता

© परी ऍम. 'श्लोक'
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1061

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pari M Shlok on July 6, 2015 at 12:24pm
vinaya kumar singh जी बहुत बहुत आभार आपका
Comment by Pari M Shlok on July 6, 2015 at 12:23pm
मिथिलेश वामनकर जी आपका दिली शुक्रिया :)

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 2:16am

आ. परी जी 

शानदार ग़ज़ल हुई है 

दिल से दाद कुबूल फरमाएं......

एक एक शेर बेहतरीन हुआ है 

अशआर अपनी सादगी से मुग्ध कर रहे है.

मुबारकबाद और ढेर सारी दुआएं 

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 11:00pm

// होगी कुछ सच्चाई तो कि धुआँ सा उठता है
यूँ ही तो सर पर कोई इल्ज़ाम नहीं आता // , बहुत उम्दा ग़ज़ल , बधाई आपको..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 5, 2015 at 2:59pm

करती है लाखों बातें आँखें उसकी मुझसे
जाने क्यूँ लब पे ही मेरा नाम नहीं आता    वाह वाह!

क्या कहने!बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई आदरणीया!

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on July 5, 2015 at 12:39pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल, बधाई आपको।

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 5, 2015 at 11:47am
बहुत खूबसूरती से भावों को सजाया है मोहतरमा दिली दाद कबूल करें इस सुन्दर सी ग़ज़ल के लिए।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 5, 2015 at 11:47am
बहुत खूबसूरती से भावों को सजाया है मोहतरमा दिली दाद कबूल करें इस सुन्दर सी ग़ज़ल के लिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 5, 2015 at 8:09am
बहुत बढ़िया परी जी दाद कुबूल फरमायें
Comment by वीनस केसरी on July 5, 2015 at 1:21am

वाह बहुत खूब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service