For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तू वहाँ मशरूफ़ मैं यहाँ तन्हा

2 1 2 2 2 1 2 1 2 2 2
तू वहाँ मशरूफ़ मैं यहाँ तन्हा
ये ज़मी तनहा वो' आसमाँ तन्हा

अब तेरी यादें यहाँ मचलती हैं
रह गया टूटा हुआ मकाँ तन्हा

हमने हर मौसम के' रंग देखें हैं
हम कभी तन्हा कभी समाँ तन्हा

चल दिए अरमां जला के' तिनकें सा
देर तक उठता रहा धुआँ तन्हा

हैं पड़ी ज़ंज़ीर दिल के पैरों में
हम अगर जाएँ तो अब कहाँ तन्हा

सोच कर ये रूह काँप जाती है
दिल में बस्ती बसे मकाँ तन्हा

जब न बंधन हो न ही रस्म कोई
हम मिलेंगे आपको वहाँ तन्हा


© परी ऍम. 'श्लोक'
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pari M Shlok on July 6, 2015 at 1:35pm
krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी आपने हमें इस काबिल समझा इस सम्मान के लिए आपकी शुक्रगुज़ार हूँ ...... !!
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 4, 2015 at 9:38pm

जी हाँ आ० अब ठीक है!

//यहाँ सीखना ही उद्देश्य है//

आपकी बात का स्वागत है!साथ ही आभार आपने मर्म समझा.!

आदरणीय! आपको  ब्लॉग पर मै बहुत समय से पढ़ता आ रहा हूँ,मेरा  तो अभी ब्लॉगिंग,obo आदि की दुनिया से अभी परिचय ही हुआ है..आप हर प्रकार से मुझसे वरिष्ठ हैं....आपके प्रति मेरे मन में बहुत आदर है!

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 2:31pm
जब न बंधन हो न रस्म हो कोई
२१२ २२१२ १२२२
हम मिलेंगे आपको वहाँ तन्हा
२१२ २२१२ १२२२

सोच कर ये रूह काँप जाती है
२१२ २२१२ १२२२

दिल में बस्ती और ये मकाँ तन्हा
२१२ २२ १२ १२२२

krishna mishra 'jaan'gorakhpuri
जी बेशक़ गलती थी और हमने ठीक करने की कोशिश की है टिप्पणी में डाल रहे हैं देखें और आपसे अनुरोध है अपनी प्रतिक्रिया भी आवश्य दें धन्यवाद हमारी गलती पर गौर कर हमें मार्गदर्शन करने हेतु दिल से आभार प्रेषित है!
Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 12:49pm
जी बेशक आपका स्वागत है यहाँ सीखना ही उद्देश्य है मेरा आप की टिप्पणी को सकारात्मक लिया है हमने और आपका आभार भी व्यक्त करती हूँ आप समय देकर पढ़ते हैं krishna mishra 'jaan'gorakhpuri ji आप मेरी बात को गलत भाव में मत लें आपसे अनुरोध है व नियमित टिप्पणी की अपेक्षा है आपसे
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 4, 2015 at 12:28pm

आ० समयाभाव के कारण हो सकता है वरिष्ठजनों ने हर पक्ष पर गौर न किया हो!.मंच पर सभी एक दुसरे से सीखते है...कमी निकालने वाली कोई बात नही है,न ही  मेरा स्वभाव ऐसा है..बात है एक-दूसरे की गलतियाँ को ध्यान दिलाने की ताकि और सुधार हो सके, एक दूसरे से हम सीख सके!

सादर!

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 12:05pm
krishna mishra 'jaan'gorakhpuri ji दिल से शुक्रिया आपका तारीफ के लिए कमी देखते हैं जहाँ रह गयी है मगर मिथिलेश वामनकर जी पढ़ा है और कोई गलती नहीं निकाली और गिरिराज भंडारी जी ने भी किन्तु आपकी जानकारी के अनुसार देखते हैं !
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 4, 2015 at 11:55am

तू वहाँ मशरूफ़ मैं यहाँ तन्हा
ये ज़मी तनहा वो' आसमाँ तन्हा          वाह!  बहुत सुन्दर मतला!          

अब तेरी यादें यहाँ मचलती हैं
रह गया टूटा हुआ मकाँ तन्हा    कहने कहने! खुबसूरत

हमने हर मौसम के' रंग देखें हैं
हम कभी तन्हा कभी समाँ तन्हा          सुन्दर!


चल दिए अरमां जला के' तिनकें सा
देर तक उठता रहा धुआँ तन्हा                    बेहतरीन!


हैं पड़ी ज़ंज़ीर दिल के पैरों में
हम अगर जाएँ तो अब कहाँ तन्हा        वाह! वाह!


सोच कर ये रूह काँप जाती है
दिल में बस्ती बसे मकाँ तन्हा..............ये मिसरा बेबहर  हो रहा है, देख लीजिये!


जब न बंधन हो न ही रस्म कोई...........रस्म (रस्+ म) का वज्न २१ होना चाहिए शायद!
हम मिलेंगे आपको वहाँ तन्हा

आदरणीया परि एम श्लोक जी ,बहुत ही सुन्दर गज़ल हुयी है,तहेदिल से दाद प्रेषित है!

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 10:02am
आप सभी गुनीजनो के आशीर्वाद और स्नेह से एक ग़ज़ल और हमारी मुक़म्मल हुई। ख़ुशी लाज़मी है !
Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 9:58am
श्री सुनील जी दिल से आभार व्यक्त करती हूँ
Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 9:56am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया स्व. मीनाकुमारी जी का नाम लेकर आपने उनकी यह ग़ज़ल पढ़ने की उत्सुकता मुझमें बढ़ा दी है। आपको ग़ज़ल पसंद आई जानकार बहुत ख़ुशी हुई और उत्साह भी चार गुना बढ़ गया :) :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service