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बदगुमानी ( लघुकथा )

" बहुत गुमान था तुमको सृजन पर , देखो मेरी ताक़त ", विनाश इतरा रहा था । पूरा इलाका तबाह हो गया था , दूर दूर तक कहीं जीवन का कोई नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था ।
लेकिन श्रृष्टि अभी भी मुस्कुरा रही थी " तुमने शायद पीछे मुड़ कर नहीं देखा "।
विनाश ने पलट कर देखा , उसका दर्प चूर चूर हो गया ।
एक नन्हीं सी कोंपल सृजन की विजय पताका फहरा रही थी , जीवन पुनः जीत गया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on June 14, 2015 at 10:48am

ये एक कुदरत का शाश्वत  नियम है एक जाता  है तो एक आता है विनाश सृजन को रोक  नहीं सकता निराशा ही आशा को जन्म देती है |

बहुत ही सार्थक लघुकथा हार्दिक बधाई विनय जी .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 14, 2015 at 9:29am

निराशा और फिर आशा को प्रेरित करती बहुत सुंदर लघुकथा, आदरणीय विनय जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 11:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी , आप जैसे लेखक से प्रसंशा मिलना सौभाग्य की बात है..

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 11:30pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय राज कुमार आहूजा जी..

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 13, 2015 at 10:40pm
ये एक सार्वभौमिक सत्य ही है कि जीवन कभी नही हारता।
बहुत सुन्दर रचना आद: विनय कुमार जी। दिल से बधाई स्वीकार करे।
Comment by rajkumarahuja on June 13, 2015 at 10:35pm

हर विनाश के बाद सृजन है, यही नियम है ! सुन्दर लघु-कथा माननीय vinaya kumar singh  जी ! 

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 9:34pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आपका स्नेह है जो आपको इतना अच्छा लगता है । सादर आभार..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 13, 2015 at 8:34pm

आ० विनय जी

बहुत सुन्दर

विनाश सृजन की हस्ती नहीं मिटा सकता , वाह .

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 5:33pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी..

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 13, 2015 at 3:52pm

शीर्षक को सार्थक करती प्रेरक लघु-कथा  , बधाई, आदरणीय विनय कुमार सिंह जी. . 

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