For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल -- " बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा " .

१२१२-११२२-१२१२-२२

निग़ाहे नाज़ से देखो, करो शिकार मेरा
तुम आजमाओ सनम दिल ये एक बार मेरा
.
तू आरज़ू है मेरी और तू है प्यार मेरा
तेरी वफ़ा पे है अब जीने का मदार मेरा
.
तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा
.
मुआमलात-ए-जवानी कहे नहीं जाते
न पूछ कौन है हमदम, कहाँ क़रार मेरा
.
वो मुझसे बात तो करता है, पर वो बात नहीं
" बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा "
.
वो बदगुमाँ है जो, कमज़र्फ़ मुझको मानता है
फ़लक से ऊँचा है दुनिया में यूँ वक़ार मेरा
.
लो आज ख़्वाबों की नीलामी कर रहा हूँ मैं
बिसाते-दह'र है और आख़िरी क़िमार मेरा
.
शजर से टूट गया, जो हवा के झौंके से
मैं ज़र्द पत्ता हूँ, खुद पर न इख़्तियार मेरा
.
ये शायरी है मेरा शौक़ मेरा इश्क़-ओ-जुनूँ
जहाँ भी सजती है महफ़िल, वहाँ दयार मेरा
.
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 846

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 2:18am

वाह वाह आदरणीय दिनेश भाई जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है दिल से दाद हाज़िर है 

आपके अशआर इश्के मजाज़ी में इश्के हकीकी का कमाल ला रहे है 

ये अशआर तो कमाल के है -

तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने 
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा 

ये शायरी है मेरा शौक़ मेरा इश्क़-ओ-जुनूँ
जहाँ भी सजती है महफ़िल, वहाँ दयार मेरा 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 11:20pm

तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा                   बहुत बेहतरीन!!


बहुत ही सुन्दर तरही गजल हुयी है आ० दिनेश सर हार्दिक बधाई!

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on June 11, 2015 at 7:32pm
शानदार तरही गजल के लिये बधाई।
Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 10:05am
शजर से टूट गया, जो हवा के झौंके से
मैं ज़र्द पत्ता हूँ, खुद पर न इख़्तियार मेरा. .. ख़ूब
अच्छी.. ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय दिनेश जी. बधाई.. बधाई आपको.
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 11, 2015 at 9:27am

आ0 दिनेश भाईजी.  इस खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई। सादर

Comment by vijay nikore on June 11, 2015 at 8:16am

खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

Comment by विनय कुमार on June 11, 2015 at 1:15am

वाह , वाह , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने , दिली बधाई क़ुबूल करें आदरणीय..

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 1:24pm
बेहद प्यारी और खुबसूरत ग़ज़ल वाह वाह।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 12:47pm

बेहतरीन , लाजवाब , सादर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 10, 2015 at 11:22am

वाह वा. आ. दिनेश भाई..बहुत ख़ूब ..बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service