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तरही ग़ज़ल -- " बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा " .

१२१२-११२२-१२१२-२२

निग़ाहे नाज़ से देखो, करो शिकार मेरा
तुम आजमाओ सनम दिल ये एक बार मेरा
.
तू आरज़ू है मेरी और तू है प्यार मेरा
तेरी वफ़ा पे है अब जीने का मदार मेरा
.
तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा
.
मुआमलात-ए-जवानी कहे नहीं जाते
न पूछ कौन है हमदम, कहाँ क़रार मेरा
.
वो मुझसे बात तो करता है, पर वो बात नहीं
" बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा "
.
वो बदगुमाँ है जो, कमज़र्फ़ मुझको मानता है
फ़लक से ऊँचा है दुनिया में यूँ वक़ार मेरा
.
लो आज ख़्वाबों की नीलामी कर रहा हूँ मैं
बिसाते-दह'र है और आख़िरी क़िमार मेरा
.
शजर से टूट गया, जो हवा के झौंके से
मैं ज़र्द पत्ता हूँ, खुद पर न इख़्तियार मेरा
.
ये शायरी है मेरा शौक़ मेरा इश्क़-ओ-जुनूँ
जहाँ भी सजती है महफ़िल, वहाँ दयार मेरा
.
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 2:18am

वाह वाह आदरणीय दिनेश भाई जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है दिल से दाद हाज़िर है 

आपके अशआर इश्के मजाज़ी में इश्के हकीकी का कमाल ला रहे है 

ये अशआर तो कमाल के है -

तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने 
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा 

ये शायरी है मेरा शौक़ मेरा इश्क़-ओ-जुनूँ
जहाँ भी सजती है महफ़िल, वहाँ दयार मेरा 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 11:20pm

तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा                   बहुत बेहतरीन!!


बहुत ही सुन्दर तरही गजल हुयी है आ० दिनेश सर हार्दिक बधाई!

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on June 11, 2015 at 7:32pm
शानदार तरही गजल के लिये बधाई।
Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 10:05am
शजर से टूट गया, जो हवा के झौंके से
मैं ज़र्द पत्ता हूँ, खुद पर न इख़्तियार मेरा. .. ख़ूब
अच्छी.. ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय दिनेश जी. बधाई.. बधाई आपको.
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 11, 2015 at 9:27am

आ0 दिनेश भाईजी.  इस खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई। सादर

Comment by vijay nikore on June 11, 2015 at 8:16am

खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

Comment by विनय कुमार on June 11, 2015 at 1:15am

वाह , वाह , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने , दिली बधाई क़ुबूल करें आदरणीय..

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 1:24pm
बेहद प्यारी और खुबसूरत ग़ज़ल वाह वाह।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 12:47pm

बेहतरीन , लाजवाब , सादर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 10, 2015 at 11:22am

वाह वा. आ. दिनेश भाई..बहुत ख़ूब ..बधाई 

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