For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सम्मान की एक जिंदगी.लघु कथा

जब से पता चला है कि रत्ना एक समय धन्धा करती थी, तब से पूरे समूह की दूसरी औरतों के चेहरे पर उसके प्रति नपंसदगी और तनाव साफ देखा जा सकता है. पर किसी में हिम्मत नहीं थी कि उसका विरोध कर सके क्योंकि सबको दीदी का डर सता रहा था. मै ये बात एक स्वयं सहायता समूह “उदया” की कर रही हूँ जो हस्तशिल्प का काम एक एन.जी.ओ. के लिए करता है, जिसे विभा दीदी संचालित करती हैं. समूह की अध्यक्षा सरला से जब रहा नहीं गया तो उसने सबसे सलाह कर दीदी से बात करने की ठानी.

आज जब विभा आई तो उसने सबके बीच पसरे तनाव को भांप लिया पर वह उसका कारण नहीं समझ पाई और जब गौर किया तो रत्ना के चेहरे पर छाया भय साफ़ दिखाई दे रहा था. विभा ने फिर भी कुछ नहीं पूछा. उनके सामने सब अपना काम करने लगी पर अन्यमनस्कता साफ़ दिखाई दे रही थी. आपस में खुसपुसाने के बाद सरला उठी और उसने विभा से कहा,” दीदी...! आपसे एक बात कहनी है.” उन्होंने स्वीकृति में सिर हिलाया.

“ बात ये है कि हम रत्ना को अपने साथ काम पर नहीं रख सकते .. शायद आपको  नहीं मालूम कि वह क्या करती थी...? ” सरला ने कहा.

“मुझे मालूम है...” विभा दी ने जैसे विस्फोट किया. इस पर समूह की औरतें ने यह कहकर खुला विरोध किया कि उन्हें मालूम होने पर भी उन्होंने छुपाया.

अब समूह की महिलाओं के विरोध का स्वर और भी मुखर हो चुका था कि वे रत्ना के साथ काम नहीं करेंगी, अन्यथा समूह छोड़ देंगी. तब विभा ने उन्हें समझाने की कोशिश की पर वे जब नहीं मानी तो उन्होंने  कठोर शब्दों में कह दिया कि वे रत्ना को किसी भी हालत में समूह से जाने को नहीं कहेंगी और यदि बाकि सब छोड़ना चाहें तो जा सकती हैं. विभा दी के इस तरह से प्रतिक्रिया देने पर सब स्तब्ध रह गई, वे दी के इस तरह बोलने से आहात हुई. उस दिन सबने चुपचाप काम  किया पर रत्ना के प्रति उनकी नफरत बढती दिखाई दे रही थी.

दूसरे दिन जब सबने काम शुरू किया तो देखा कि रत्ना काम पर नहीं आई थी, सबके चेहरे पर मुस्कान थी पर विभा दी ये देखकर उदास हो गईं. उन्होंने कुछ सोचकर सबको अपने ऑफिस आने को कहा. सबके आने के बाद उन्होंने सबसे सवाल किया कि सबको रत्ना के काम करने पर एतराज क्यों है ...? तो सबका एक ही जवाब था कि वे ऐसी औरत के साथ काम नहीं कर सकते जो धन्धा करती थी. विभा दी ने जब “थी” पर जोर दिया तो भी वे नहीं मानी क्योंकि उनके हिसाब यदि लोंगों को पता चला तो उन्हें  लोंगों और समाज को भी जवाब देना पड़ सकता था. विभा दी ने कहा कि आप सब भी औरत हो और आप समझ सकती हो कि कोई भी औरत अपनी ख़ुशी से ये काम नहीं करना चाहती और जबकि वो ये सब छोड़कर मेहनत की कमाई खाना चाहती है तो ऐसे समय पर आप सब उसका साथ देने की बजाय उसकी हिम्मत तोड़ना चाहती हो. अगर आपका यही व्यवहार रहा तो वो इस सम्मान भरे रास्ते को छोड़कर कहीं फिर से पुरानी राह पर न चल दे, यदि ऐसा हुआ तो एक इन्सान को गलत राह पर धकेलने का अपराध उनके सिर आएगा और फिर कोई और रत्ना एक सम्मान भरी जिंदगी जीने की राह पर कदम रखने से कतराएगी. हो सकता है की रत्ना अपने जीवन का कोई तीसरा ही राह न चुन ले जो की हताश होने पर हर व्यक्ति करता है.

विभा दी की बात सुनकर समूह की औरतों सोच में पड़ जाती  हैं और जैसे जैसे वे आपस में बातचीत करती हैं, उन्हें अपनी गलती का एहसास होने लगता है और वे आपस में एक निश्चिय करती हैं जिसकी भनक वे विभा दी को नहीं लगने देती.

दूसरे दिन जब विभा दी समूह के वर्कशॉप में आती हैं तो समूह की औरतों के बीच रत्ना हंसती हुई काम करती नजर आती है तो वे आश्चर्य में पड़ जाती है. थोड़ी देर बाद वे रत्ना को बुलाकर पूछती हैं कि ये सब कैसे हुआ...? तो रत्ना उन्हें बताती है कि कल शाम को वे सब उसके घर आई थीं और उन्होंने उससे माफ़ी मांगी और वापिस काम पर लौट आने को कहा. रत्ना कहती है कि जब ये सब मेरी सच्चाई जान  गई थीं तो मेरा वैसे भी काम पर लौटना मुश्किल था. मुझे पता था कि वे सब मुझसे नफरत करने लगी थीं. पर कल जब सब मुझसे मिलकर अपने किये पर शर्मिंदा हुईं तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ था कि मेरी जिंदगी में ऐसा भी परिवर्तन हो सकता है और अब तो मै भी सम्मान से सिर उठाकर जी सकूंगी पर ये इन सब के ऐसा किया बिना संभव नहीं था. रत्ना की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे.

मौलिक एवं अप्रकाशित

(वीणा सेठी)

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2015 at 1:10am

आदरणीया वीणा सेठीजी, आपकी यह प्रस्तुति लघुकथा नहीं लगी. खेद है कि इस प्रस्तुति के पाठक अच्छे लघुकथाकार होइने के बावज़ूद आपको अग़ाह नहीं कर पाये.
आप इस मंच की अन्य बेहतर लघुकथाओ को अवश्य पढ़ती रहें.
शुभेच्छाएँ.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 7, 2015 at 7:29am

बहुत सुन्दर!हार्दिक बधाई आदरणीया वीणा सेठी जी!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 7, 2015 at 5:44am

बदलते समाज की अच्छी कहानी ....बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2015 at 3:06am

सुंदर भावपूर्ण लघुकथा. बधाई आदरणीया वीणा जी

Comment by maharshi tripathi on June 6, 2015 at 7:31pm

सुन्दर रचना आ.वीणा सेठी जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2015 at 7:30pm

ये कहानी बहुत भाव पूर्ण लेकिन प्रेरक भी बहुत बहुत बधाई वीणा सेठी जी 

Comment by विनय कुमार on June 6, 2015 at 6:42pm

अच्छी भावपूर्ण लघुकथा , बधाई आपको आदरणीया..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service