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जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ

२१२२  १२१२   २२

हुस्न वाले सलाम करते हैं 

क़त्ल यूं ही तमाम करते हैं 

वो मसीहा चमन को लूट कहे 

काम ये लोग आम करते हैं 

आग दिल में लगाते गुल दिन में 

रात तन्हाई नाम करते हैं 

काम मेरा हुनर जो कर न सका 

मैकदे के ये जाम करते हैं 

जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ 

शेख तो  सुब्हो-शाम करते हैं 

कैसे रिश्तों में वो तपिश मिलती 

रिश्ते जब तय पयाम करते हैं 

उनको बुलबुल तभी ये भाती है 

जब ये उसको गुलाम करते हैं 

दिल में खंजर छुपा के बैठे पर 

मिलते ही राम राम करते हैं 

सोना चढ़ कर के सर पे बोल रहा 

काम ये उसके दाम करते हैं 

हिन्दू मुस्लिम के बीच खाई को 

गहरा पंडित इमाम करते हैं

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 29, 2015 at 7:47pm

आ० आपकी व्याख्या से अर्थ स्पष्ट हुआ!पर ''वो मसीहा'' से बात स्पष्ट नही हो रही ''खुद को मसीहा कहने वाले'' ऐसा कुछ भाव रहता तो ज्यादा स्पष्ट होता!सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:23pm

प्रिय कृष्णा जी . मसीहा शब्द मैंने इस लिए लिया था क्योंकि तमाम धर्म गुरु जो जमाने के लिए मसीहा बने हुए हैं उन्होंने जो कृत्य किये हैं उनसे कितने ही लोगों के खुशी में दिन गुजारते परिवार मानसिक अवसाद की स्थिति में आ गए ..मैंने ये सोच कर लिखा था ..आपके बिचार के अनुरूप चिंतन करके उचित संसोधन करने का प्रयास करूंगा ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:16pm

आदरणीय समर कबीरजी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया और मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूँ ..आपके मशविरा बिलकुल सही है मैं उचित संसोधन करने का प्रयास करूंगा सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:15pm

प्रिय कृष्णा जी ..आपके इन स्नेहिल उत्साहवर्धक शब्दों के लिए दिल से धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:14pm

आदरणीय नूर जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Samar kabeer on May 29, 2015 at 12:06am
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,बहुत अच्छी और ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ"

इस मिसरे में आपने "हंगामा" शब्द को लिखा तो "हंगामा" है लेकिन इसे "हगामा" के वज़्न पर बांधा है जिसकी वजह से लय बाधित हो रही है ,देख लीजियेगा ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 10:05pm

वाह! वाह! आ० आशुतोष सर! सुन्दर गजल हुयी है हार्दिक बधाई!

मुझे 'मसीहा' शब्द का चयन तनिक जम नही रहा! निवेदन है कृपया देख लीजिये!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2015 at 9:38pm

वाह आ. आशुतोष जी .... बहुत अच्छे ..बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 9:34pm

आ0 आशुतोष भाई जी,  // दिल में खंजर छुपा के बैठे पर, मिलते ही राम राम करते हैं //.........सुंदर गज़ल के लिये दाद कुबूल करें. सादर

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