For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गम नही मुझको............'जान' गोरखपुरी

   २१२  २१२२   १२२२

गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर               (फ़र्द = अकेला)

दिल का पर क्या करूं मर्ज होने पर

 

उनको है नाज गर बर्क होने पर

मुझको भी है गुमां गर्द होने पर

चारगर तुम नहीं ना सही माना

जह्र ही दो पिला दर्द होने पर

 

अपनी हस्ती में है गम शराबाना

जायगा जिस्म के सर्द होने पर

 

डायरी दिल की ना रख खुली हरदम

शेर लिख जाऊँगा तर्ज होने पर

 

तान रक्खी है जिसने तेरी चादर

भूलता क्यूँ उसे अर्श होने पर

 

माल साँसों की, कर हर घड़ी सिमरन

ठगना क्या?वख्त-ए-मर्ग होने पर

 

जुर्म उसका होना अन्नदाता था

लटका सूली दिया कर्ज होने पर

 

बात सच्ची कहूँ सुन  मिले चाहे

बद्द्दुआ लाख़ ही तर्क होने पर

 

मुफलिसी का तेरी तू है जिम्मेवार

है गुनह रहना चुप फ़र्त होने पर                 (फ़र्त = ज्यादती/जुल्म)

 

रात सोलह दिसम्बर बारह दिल्ली

शर्मसार आदमी मर्द होने पर

******************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी

******************************************

Views: 1259

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 18, 2015 at 11:09am

आ० जितेन्द्र सर जर्रानवाजी के लिए हार्दिक आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 18, 2015 at 10:00am

वाह! आदरणीय कृष्णा जी, क्या बेहतर अशआर कहे है आपने

जुर्म उसका होना अन्नदाता था

लटका सूली दिया कर्ज होने पर

 

बात सच्ची कहूँ सुन  मिले चाहे

बद्द्दुआ लाख़ ही तर्क होने पर  ...... विशेष बधाई कुबुलें ,यह शे'र बहुत पसंदीदा हुए

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2015 at 8:47pm

गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर              

दिल का पर क्या करूं मर्ज होने पर      

मतला दरअस्ल यूँ हुआ था>>>

गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर              

दिल का पर क्या करूं दर्द होने पर    ...गज़ल में मत्ले में काफ़िया फ़र्द और दर्द लेने पर....बाकि के शेर में काफ़िया गर्द,सर्द,मर्द, यानि र् के साथ द पर समाप्त होने वाले शब्द ही केवल हमकफिया होते!इस स्थिति से बचने के लिए मतले में काफिया फ़र्द और मर्ज

लिया..जिस पर मुझे भी संदेह था...और इसीके निवारण/मार्गदर्शन हेतु ही यहाँ गजल प्रस्तुत की है....

मेरे मन में जो प्रश्न है निवारण हेतु यहाँ लिख रहा हूँ मार्गदर्शन निवेदित है:-

आ० तिलक सर के लेख से>>

''मूल प्रश्‍न यह है कि काफि़या निर्धारित कैसे हो सकता है और इसमें तो कोई विवाद नहीं कि काफि़या स्‍वर-साम्‍य का विषय है न कि व्‍यंजन साम्‍य का। कुछ ग़ज़लों में जो व्‍यंजन-साम्‍य प्रथमदृष्‍ट्या दिखता है वह वस्‍तुत: स्‍वर-साम्‍य ही है और व्‍यंजन के साथ 'अ' के स्‍वर पर काफिया बनने के कारण व्‍यंजन-साम्‍य दिखता है''

 इसी संदर्भ मे उदाहरणत: आदरणीय वीनस सर के लेख से - हवा, मिला को यदि ग़ज़ल में काफ़िया के लिए प्रयोग करते हैं तो अंतिम व्यंजन अलग अलग व, होने के कारण केवल स्वर का साम्य है इसलिए आगे के अशआर में ऐसे शब्द ले सकते हैं जिसमें केवल "आ" स्वर को निभाया गया हो जैसे - नया, चुका, मिला, किया आदि| आ की मात्रा के पहले कोई भी व्यंजन हो सकता है और उसके पहले कोई भी स्वर हो, कोई फर्क नहीं पड़ता !

१)मेरा प्रश्न यह है कि यदि "आ" स्वर को निभाने दोष क्यों नही है जबकि हर्फे रवि यहाँ भी अलग अलग है! 'अ' स्वर मानकर निभाने पर दोष क्यों हुआ??क्या केवल दीर्घ होने के कारण?? 

२)हवा, मिला काफिया लेने पर आ की मात्रा के पहले कोई भी व्यंजन हो सकता है और उसके पहले कोई भी स्वर हो, कोई फर्क नहीं पड़ता ! यह छूट भी मिल गयी....जबकि मक्ते में मुश्किल के साथ बादल काफिया लेना गलत हुआ? जबकि अंत में ल्+अ हर्फे रवी का  साम्य भी है?

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2015 at 5:55pm

आ० निलेश सर!,आ० इन्तजार सर! आ० भाई केवल प्रसाद जी!, आ० समर सर! आ० वीनस केसरी सर! आ० सुशील सरना जी

आप सभी का गजल पर मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!!

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2015 at 2:35pm

गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर
दिल का पर क्या करूं मर्ज होने पर

वाह आदरणीय बहुत सुंदर भावों की ग़ज़ल बनी है। हार्दिक बधाई

Comment by वीनस केसरी on May 17, 2015 at 1:30am

गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर              

दिल का पर क्या करूं मर्ज होने पर

बाकी सब तो बाद की बात ...
इस मतले में कवाफ़ी क्या ले बैठे ???
हर्फे रवी क्या है ?
अर्थात काफिया के शब्दों की सम्तुकान्तता कहन गयी ?

फ़र्द और मर्ज में हलंत र तो और के पहले आएगा न ...

फ र् द
म र् ज़

और हाँ अरकान भी सही कीजिये ... २१२ / २१२ / २१२ / २२

Comment by Samar kabeer on May 16, 2015 at 10:53pm
जनाब "जान" गोरखपुरी साहिब ,आदाब,मैं जनाब निलेश "नूर" जी की बात से सहमत हूँ ।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 16, 2015 at 7:01pm

आ0 जान भाई जी,  गज़ल तो दमदार हुई है.  दाद कुबूल करे.  किंतु..काफिये में कुछ संदेह हो रहा  है. सादर

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 16, 2015 at 4:10pm

वाह वाह क्या क्या कह दिया ...प्रभावी प्रस्तुति (ग़ज़ल की तकनिकी का मुझे इल्म नहीं )...सादर 

रात सोलह दिसम्बर बारह दिल्ली

शर्मसार आदमी मर्द होने पर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2015 at 3:43pm

अक्षर काफ़िया दोषपूर्ण है .  
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
11 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
18 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service