For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खो गई इंसानियत

यूँ तो दिखते ,
कितने ही चेहरे ,
मिलते-जुलते इंसानोँ से ।
पर , जब उनकी
फितरत देखी,
तो लगी हैवानोँ सी !!
करते हैँ शर्मसार ,
इंसानियत को ।
देख कर इनकी करतूतेँ ,
सवाल करते हैँ जानवर भी ,
कि क्योँ हैँ हम बदनाम !
जब कि इतना ज्यादा ,
गिर चुका है इंसान ।
खुदा ने उसे ज़हानत दी ,
कुछ भी करने की ताकत दी ,
फिर भी वह ,इतना गिर गया ?
कि लाश का कफ़न भी ,
नोँच कर ले गया !
घायल को देख कर ,
नहीँ पसीजा ,
उसका कलेजा ।
हाँ ..... उसके गहने और दौलत ,
लूट लिये सबसे पहले !
उफ़ ....अरे कोई ...
लाओ ढूँढ कर ,
कहाँ खो गयी
इंसानियत ?
और सबके ऊपर
हो गयी हावी,
हैवानियत !
जब मिल जायेगा कोई इंसान ,
तो नवाजा जायेगा उसको,
ख़ैर मक़दम से ।
और बतौर यादगार ,
उसे तोहफे मेँ दी जायेगी ,
इंसान की तसवीर ।
जिससे आने वाले कल मेँ ,
लोग जानें,
कि दुनिया मेँ कभी,
इंसानियत नाम की चीज़
भी हुआ करती थी ।।


( मौलिक एवम् अप्रकाशित )

Views: 531

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 6:18pm

आदरणीया ज्योत्स्ना जी ..बहुत ही सही चित्रण किया है आपने इस रचना के माध्यम से ..यथार्थ को चित्रित करती इस शानदार रचना के लिए सादर बधाई सादर 

Comment by jyotsna Kapil on May 13, 2015 at 5:48pm
आ समर कबीर जी आपकी दाद और बेशकीमती लफ्ज़ों के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आपकी।आपके हर लफ्ज़ ने बहुत हौसला अफ़ज़ाई की है मेरी।
Comment by jyotsna Kapil on May 13, 2015 at 5:45pm
आ मोहन सेठी जी अपने सराहा और मुझे लगा
कीएरा लेखन सफल हो गया ।सादर आभार एवम् नमन।
Comment by jyotsna Kapil on May 13, 2015 at 5:43pm
आ जितेंद्र पसटारिया जी सराहना के लिए तहेदिल से आभारी हूँ आपकी।आप जैसे मित्रों के लफ्ज़ बहुत कीमती हैं मेरे लिए।
Comment by Samar kabeer on May 13, 2015 at 11:20am
मोहतरमा ज्योत्सना कपिल जी ,आदाब,मुझे आपका लेखन पसंद है, यह रचना भी बहुत सुन्दर है ,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाऐं ।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 13, 2015 at 7:25am

आज के हालात का वर्णन बिलकुल सत्य है ...इंसानियत अब इंसान से अलग हो चुकी ही ....बधाई ...सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 11:46pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति, आदरणीया ज्योत्स्ना जी. बधाई आपको

Comment by jyotsna Kapil on May 12, 2015 at 10:38pm
आपकी सराहना अनमोल है मेरे लिए डा. विजय शंकर जी।सादर नमन एवं आभार।
Comment by jyotsna Kapil on May 12, 2015 at 10:37pm
आपका बहुत आभार एवम् नमन आ रोहित दुबे जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2015 at 6:09pm
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय सुश्री ज्योत्सना कपिल जी, बधाई, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
12 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service