For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी बेटी
तेरी खातिर ,
गुब्बारे लाने थे मुझको,
नीले, पीले,लाल,गुलाबी,
हरे,बैंगनी,खूब सजीले
बहुत सुनहरे और चमकीले
गुब्बारों के दाम बहुत थे
पास मेरे पैसे कुछ कम थे
पर
तेरे हिस्से का समय बहुत था....
दूर कहीं परदेस मे बेटी
तेरे जैसे बहुत से बच्चे
अँधियारो से जूझ रहे है
चमक रहे है,बुझ भी रहे है
तेरे हिस्से का समय मै गुड़िया
इन बच्चों में बाँट रहा हूँ
जिससे इनको रंग मिले
समता समानता स्वतंत्रता के
और खिल जाये इनका जीवन
और मै भी खरीद लाऊँ तेरी खातिर
गुब्बारे ही गुब्बारे
जीवन की सब खुशियो के
खूब चमकीले और सुनहरे
ये सब हो जाने पर भी
तेरा ऋणी रहूँगा सदा
मोल कभी भी तेरे समय का
बेटी, नहीं दे पाउँगा
खुद को कैसे समझाउगाँ

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on May 13, 2015 at 9:33pm
आदरणीय केवल भाई
पहली बार आप की निगाह में आया हूँ
सादर आभार
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2015 at 8:38pm

अतीव सुंदर प्रभाव पूर्ण कविता.  हार्दिक बधाई. आ0 मनोज भाईजी.

Comment by मनोज अहसास on May 13, 2015 at 8:32pm
बहुत शुक्रिया डा० मिश्रा जी
आपका बहुत आभार
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 6:12pm

आदरणीय मनोज जी ..बहती हुई भावों की नदी ..दिल को छू लेने वाली शसक्त रचना मेरी तरफ से हार्दिक बधाई सादर 

Comment by मनोज अहसास on May 13, 2015 at 2:06pm
शुक्रिया
मेहरबानी
आप सब ने साथ दिया
मेरी कविता से आप जुड़े
मेरी भावना को आपने महसूस किया
हमेशा आप सबके साथ की बहुत ज़रूरत है
सादर
Comment by Samar kabeer on May 13, 2015 at 11:22am
जनाब मनोज कुमार अहसास जी ,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 6:15am
आदरणीय मनोज भाई जी
जब कविता दिल से निकलती है तो सीधे दिल पे असर करती है।
भावुक कर दिया आपने।
इस गहरी और प्यारी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 11:53pm

अति सुंदर, भावपूर्ण रचना आदरणीय मनोज जी. हार्दिक बधाई

Comment by jyotsna Kapil on May 12, 2015 at 10:43pm
अत्यंत सुंदर भाव,मन को छू लेने वाली रचना आ मनोज कुमार अहसास जी।
Comment by मनोज अहसास on May 12, 2015 at 10:00pm
प्रणाम सर
आप सदैव मेरा आत्मविश्वास बढ़ाते रहे है
आभार
मै आजकल परदेस में रह रहा हु
बेटी की याद आई तो ये पंक्तिया मुह से निकल गयी
आपने साथ दिया
आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
6 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
15 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service