For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है

गरीबी ही सदा हमको कलेजे से लगाती है

 

भरा हो पेट जिसका ठूँस कर उसको खिलाती पर

जो भूखा हो अमीरी भी उसे भूखा सुलाती है

 

अमीरी का दिवाला भर निकलता है सदा लेकिन

गरीबी कर्ज़ से लड़ने में जान अपनी गँवाती है

 

अमीरी छू के इंसाँ को बना देती है पत्थर सा

गरीबी पत्थरों को गढ़ उन्हें रब सा बनाती है

 

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है

----

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 4, 2015 at 12:22pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, बहुत उम्दा गजल कही है आपने. दिली बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 4, 2015 at 7:55am
आदरणीय बड़े भाई धमेन्द्र जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है।
Comment by मनोज अहसास on May 3, 2015 at 9:25pm
बहुत सुन्दर
Comment by Samar kabeer on May 3, 2015 at 10:22am
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है अपने,सभी अशआर अमीरी और ग़रीबी के गिर्द घूम रहे हैं,ग़ज़ल में किसी दूसरे मोज़ूअ को जगह नहीं मिल पाई, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by seema agrawal on May 3, 2015 at 12:38am

अमीरी छू के इंसाँ को बना देती है पत्थर सा

गरीबी पत्थरों को गढ़ उन्हें रब सा बनाती है

 

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है

पूरी  ही  ग़ज़ल  के  शेर  तराशे  हुए  हैं  पर  इन दोनों अश'आर  में  कुछ  अलग  ही  बात  है  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2015 at 9:54pm

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है

क्या बात है , आदरणीय धर्मेन्द्र सज्जन भाई , अमीरी का खूब चरित्र चित्रण हुआ है , लाजवाब  गज़ल के लिये बधाई आपको ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 8:29pm
बहुत अच्छी ग़ज़ल , अमीरी एक स्वप्न , गरीबी एक सच्चाई, हम लोगों के परिवेश में तो यही है ,
बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र जी , सादर।
Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 8:14pm

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है.....वाह...अमीरी और गरीबी को खूब परिभाषित किया आपने इस ग़ज़ल में...बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service