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अब और सब्र का तू मेरे इम्तिहाँ न ले

221 2121 1221 212

अब और सब्र का तू मेरे इम्तिहाँ न ले

मेरी ज़मीं न छीन मेरा आसमाँ न ले

 

है मुख़्तसर ज़मीन तमन्नाओं की फ़क़त

ऐ बेरहम नसीब यूँ मेरा जहाँ न ले

 

कम रख ज़रा तू अपनी रवानी को ऐ हवा

इतना रहम तो कर कि मेरा आशियाँ न ले

 

जज़्बात से न बाँध मुझे ऐसे हमनशीं

मत रोक लफ़्ज़ मेरे यूँ मेरी ज़बाँ न ले

 

कायम है कायनात शजर के वुजूद से

खुद को ही बेवुजूद न कर अपनी जाँ न ले

 

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 22, 2015 at 8:58am

बहुत ही बेहतरीन! और लाजव़ाब गज़ल के लिए ढ़ेरों मुबारकबाद आदरणीय शिज्जू सरजी!

है मुख़्तसर ज़मीन तमन्नाओं की फ़क़त

ऐ बेरहम नसीब यूँ मेरा जहाँ न ले                 हसरत-ए-तामीर! क्या कहने इस शेर के! 

जज़्बात से न बाँध मुझे ऐसे हमनशीं

मत रोक लफ़्ज़ मेरे यूँ मेरी ज़बाँ न ले    वाह! वाह!

कायम है कायनात शजर के वुजूद से

खुद को ही बेवुजूद न कर अपनी जाँ न ले     बेहद उम्दा! लाजव़ाब!  इस शैर पर विशेष बधाईयां!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 22, 2015 at 6:53am

वाह वाह बहुत ख़ूब कहा ....आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी बधाई ...सादर 

Comment by shree suneel on April 22, 2015 at 1:34am
आदरणीय शिज्जू सर, अच्छी ग़ज़ल, ख़ूबसूरत ज़मीन. बधाईयाँ.. बधाईयाँ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 11:31pm
आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। हर शेर कमाल हुआ है दिल से दाद हाज़िर है।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2015 at 9:01pm

बहुत खूब --रंग-ए-शिज्जू ..क्या कहने 

Comment by दिनेश कुमार on April 21, 2015 at 8:43pm
लाजवाब ग़ज़ल हुई है। हर एक शे'र के लिए ढेरों दाद आदरणीय भाई शिज्जू शकूर जी। वाह वाह वाह
Comment by MAHIMA SHREE on April 21, 2015 at 8:12pm

वाह...लाजबाव बधाई आपको

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