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ग़ज़ल - मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया ( गिरिराज भंडारी )

22    22    22    22    2

शहर ज़रा सा मुझमें भी तो आया है

यही सोच के गाँव गाँव शर्माया है

 

मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया

किस अँधियारे ने इसको भरमाया है

 

याराना कुह्रों से है क्या मौसम का

आसमान तक देखो कैसे छाया है

 

चौखट चौखट लाशें हैं अरमानों की

किस क़ातिल को गाँव हमारा भाया है

 

सूखी डाली करे शिकायत तो किस को

सूरज आँखें लाल किये फिर आया है

 

छप्पर चुह ते झोपड़ियों का क्या कहना

हाल पूछने नाला घर तक आया है  

 

किसी रोशनी को लूटा फिर अँधियारा

चौक चौक में फिर चर्चा गरमाया है

 

जिन सोचों की नदी बही है आंगन तक

देख उसे बूढ़ा बरगद थर्राया है

 

बाट जोहतीं गलियाँ राहें चौबारे

ख़बर मिले , कब भूला वापस आया है 

  

इन पथरीली राहों के उस पार कहीं

कुछ ख़्वाबों ने सच का घर बनवाया है

 

फिर से देखो हवा हुई है तूफानी

फिर से कोई दीप जलाने आया है 

******************************* 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 970

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2015 at 2:42pm

आदरणीय गिरिराजभाईजी,  .........................................

............................................................................

............................................................................

............................................................................

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 2:42pm

आदरणीय समर भाई , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 2:41pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 2:22pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहरें तो बहुत होंगी लेकिन मै उन्ही बहरों को जानता हूँ , जिनपे मैने ग़ज़ल कही है , वो निम्न हैं  

2122   1212   22 /112 

1212    1122    1212   22 /112

और तीसरा जो आप अभी पढ़े हैं ॥ सभी ग़ज़लो में ये छूट नही मिलती ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 2:16pm

आदरणीय कृष्णा भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 16, 2015 at 11:54am

आ० अनुज

 एक जिज्ञासा कि यह छूट हर बहर में मिलेगी या  केवल कुछ खास बहर में i यदि कुछ खास बहर में तो वे कौन सी बहरे  हैं . सादर .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 15, 2015 at 10:57pm

किसी रोशनी को लूटा फिर अँधियारा

चौक चौक में फिर चर्चा गरमाया है           वाह! वाह! वाह!

लाजव़ाब इस शेर से दिल बाग़ बाग़ हो गया!गूंजता रहेगा दिमाक में.......अभिनन्दन आदरणीय गिरिराज सर!

Comment by Samar kabeer on April 15, 2015 at 10:51pm
समझ गया जी |
Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 10:25pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर ,हर बार की तरह ,सुन्दर रचना ,

किसी रोशनी को लूटा फिर अँधियारा

चौक चौक में फिर चर्चा गरमाया है/ 

जिन सोचों की नदी बही है आंगन तक

देख उसे बूढ़ा बरगद थर्राया है..................वाह , बहुत बहुत  बधाई , सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 15, 2015 at 6:26pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , इस बहर में , 22  को 112 , 121  , 211  करने की छूट रहती है , बस गेयता बाधित न हो इसका खयाल रखा जाता है । 22 ( फेलुन ) की संख्या  आप कितनी भी रख सकते हैं , अंत में ( फा ) 2 आये तो गेयता अच्छी आती है ॥

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