For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न जाने किये कौन से रतजगे हैं /// हिंदी गजल (प्रयास जारी}

 

  मुतकारिब मुसम्मन सालिम

 122   122   122   122

 

न जाने  किये कौन से रतजगे हैं      

मुझे आप से तुम वो कहने लगे है

 

पिया है अमिय रूप वह जो तुम्हारा

पड़ा हूँ ,  सभी रोम रस में पगे हैं

 

हुआ  पाटली नैन  का जोर जादू

खड़े  इंद्र  गन्धर्व सब तो ठगे हैं

 

जिन्हें काम का देवता लोग कहते 

तुम्हे  देखकर काम उनके जगे हैं

 

हुआ है अभी  यह नया नेह बंधन

कि  लगते मुझे वे सगों से सगे हैं

 

पुछल्ले –

 

जलज यह नही, हैं विषैले विलोचन 

यही सोचकर प्रिय भ्रमर सब भगे हैं

 

चली आयी ख्वाबों में बारात उनकी

सुनो ध्यान से कितने गोले दगे हैं

 

Views: 689

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 9, 2015 at 3:57pm
जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,एक के बाद एक सुन्दर रचनाओं से मंच को नवाज़ रहे है आप,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
पुछल्ले का यह मिसरा:-
"यही सोचकर प्रिय भ्रमर सब भगे हैं"

बह्र से ख़ारिज हो रहा है,इसे इस तरह लिखेंगे तो सही हो जाएगा:-

"यही सोचकर प्रिय भ्रमर भगे हैं" |
Comment by Nazeel on April 9, 2015 at 11:40am

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी  अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे।  आप  जैसे गुनीजनो की रचनाओ से हर दिन बहुत कुछ सिखने को मिल  रहा है । एक बार फिर से हार्दिक बधाई । 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 11:14am
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है , बहुत बहुत बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2015 at 10:57am

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी ,  क्या बात है ! खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

दो एक ग़ैर ज़रूरी सलाह दे रहा हूँ , अगर आपको भाई अच्छा लगे तो स्वीकार की जियेगा --

पिया है अमिय रूप वह जो तुम्हारा  ----    पिया है अमिय रूप जब से तुम्हारा  ( वह जो, बहर मिलाने का प्रयास लग रहा है )

पड़ा हूँ ,  सभी रोम रस में पगे हैं   ------     पड़ा हूँ ,  सभी रोम रस में पगे हैं    

हुआ है अभी  यह नया नेह बंधन          हुआ है अभी  यह नया नेह बंधन

कि  लगते मुझे वे सगों से सगे हैं  ----   मगर लग रहे  वे सगों के  सगे हैं -- ( कि, भी बहर मिलाने के लिये किया गया प्रयास लग रहा है )

सलाह अगर सही न लगे तो छोड़ दीजियेगा ॥ सादर !!

Comment by Shyam Narain Verma on April 9, 2015 at 10:54am

सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई।

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 12:44am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है 

आपके अभ्यास के क्रम में मेरा रिवीजन हो रहा है सर 

आप के अनुभव का तड़का ग़ज़लों में आने लगा है 

हिन्दी के तत्सम शब्दों का ग़ज़ल में सुन्दर प्रयोग .... इससे मुझे भी सीखने को मिल रहा है 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
9 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service