For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,

गजल लिखने का प्रयास मात्र है, कृपया सुधारात्मक टिप्पणी से अनुग्रहीत करें  

अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.


आश लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.


राम रहीम अल्ला के बन्दे, फर्क नहीं मुझको दिखता,
सबके अंदर एक रूह, फिर किसका खून बहाता हूँ.


रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, राह खुदा का पाता हूँ.


हिंसा करना, शोर मचाना, ऐसी भी कोई पूजा है
प्रेम तत्व को खुद न समझा, औरों को समझाता हूँ.


तेरा मेरा उसका सबका, भेद बहुत ही है गहरा
इन भेदों से ऊपर उठकर, अखिल विश्व पा जाता हूँ

 (मौलिक व अप्रकाशित)

- जवाहर लाल सिंह 

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:19pm

आदरणीय श्री गोपाल नारायण जी अगर आपलोगों का मार्ग दर्शन साथ रहेगा तो रफ़्तार अवश्य बढ़ेगी ..सादर!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:18pm

आदरणीय नीलेश जी, सादर अभिवादन! 

आपके अनुसार पहली पंक्ति - अंदर अंदर रोता हूँ मैं, बाहर मुस्कुराता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.

और 

रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, साथ खुदा का पाता हूँ.

कर दिया जाय तो यह गजल कही जा सकती है 

बाकी तकनीक में बाद में जाऊँगा, मगर आपलोगों का मार्गदर्शन रहेगा तो मैं निश्चित ही आगे प्रयास करता रहूँगा ...सादर! 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 8:30pm
आस लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.
बहुत ही सही प्रत्यावेदन। बहुत खूब, आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी,बहुत बहुत बधाइयां , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on April 2, 2015 at 8:05pm

आदरणीय जवाहर जी,

सुंदर रचना के लिए दिल से बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 4:35pm

आदरणीय जवाहर भाई , गज़ल का प्रयास सराहनीय है , बातें भी खूब कही हैं , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2015 at 4:13pm

बहुत खूब जवाहर सर .... बहुत-2 बधाई.. पहली ग़ज़ल पर आदरणीय. ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 3:46pm

इस रचना पर बधाई आपको 

आदरणीय नीलेश जी से सहमत हूँ.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 12:25pm

आ० जवाहर लाल जी

नीलेश जी ने आपको हरी झंडी  दे दी . अब तो रफ्तार बढनी  चाहिए .सादर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 12:12pm

बहुत खूब आ. जवाहर जी 
मुझे लगता है सही शब्द मुस्कुराता है, मुस्काता के स्थान पर 
राह ख़ुदा का नहीं ख़ुदा की होगा ..शायत टाइपिंग एरर है ..
थोडा और समय दीजीये रचनाओं को. आप सही मार्ग पर हैं ..
बधाई और शुभकामनाएँ 

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 11:50am
इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service