For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : ज़ुल्फ़ का घन घुमड़ता रहा रात भर

बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२

 

ज़ुल्फ़ का घन घुमड़ता रहा रात भर

बिजलियों से मैं लड़ता रहा रात भर

 

घाव ठंडी हवाओं से दिनभर मिले

जिस्म तेरा चुपड़ता रहा रात भर

 

जिस्म पर तेरे हीरे चमकते रहे

मैं भी जुगनू पकड़ता रहा रात भर

 

पी लबों से, गिरा तेरे आगोश में

मुझ पे संयम बिगड़ता रहा रात भर

 

जिस भी दिन तुझसे अनबन हुई जान-ए-जाँ

आ के ख़ुद से झगड़ता रहा रात भर

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2015 at 10:51am
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आ. मिथिलेश वामनकर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2015 at 10:49am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गोपाल नारायन जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2015 at 10:48am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. श्याम नारायण जी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2015 at 3:48pm

आदरनीय धर्मेन्द्र जी ..इस ग़ज़ल को गुनगुनाने में बहुत मज़ा आया ..शानदार   इस रचना के लिए हार्दिक बढ़ाए स्वीकार करें सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 8:13am

.

जिस भी दिन तुझसे अनबन हुई जान-ए-जाँ

आ के ख़ुद से झगड़ता रहा रात भर..... बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2015 at 11:26pm

जिस्म पर तेरे हीरे चमकते रहे

मैं भी जुगनू पकड़ता रहा रात भर

 

पी लबों से, गिरा तेरे आगोश में

मुझ पे संयम बिगड़ता रहा रात भर

जिस भी दिन तुझसे अनबन हुई जान-ए-जाँ

आ के ख़ुद से झगड़ता रहा रात भर   ----- क्या बात है , आदरणीय धर्मेन्द्र भाई ,  खूबसूरत ग़ज़ल हुई है , आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on March 24, 2015 at 4:46pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी,आदाब,सुन्दर ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें |
Comment by somesh kumar on March 23, 2015 at 8:38pm

जिस भी दिन तुझसे अनबन हुई जान-ए-जाँ

आ के ख़ुद से झगड़ता रहा रात भर

बहुत ज़मीनी बात कह दी आपने ,आनन्द ही आनन्द !

Comment by दिनेश कुमार on March 23, 2015 at 7:13pm
बहुत अच्छी ग़ज़ल भाई धर्मेंद्र जी। वाह वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 2:31pm
वाह वाह धर्मेन्द्र भाई क्या खूब ग़ज़ल कही है। कितनी बातें एक साथ याद आ गई। फ़ैज़ साहब का कलाम, जयदेव की धुन, छाया गांगुली की आवाज़ और आपकी ग़ज़ल को गुनगुनाते हुए कितनी ही यादों से गुजर गया। आनंद आ गया। झूम गया आपकी ग़ज़ल गुनगुनाकर। हार्दिक आभार इस प्रस्तुति के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service