कुंठाओं के झरे पात,
आशाओं का हो सुप्रभात
दफ़न हो घात प्रतिघात
खुशिओं के सदा बहें प्रपात
चैन की आए रात
बची रहे इंसानियत की जात
चलती रहे गीत गजलों की बात
हम समझें सबके जज्बात
खुश्बू भरे मौसम से हो मुलाकात
जख्मी रिश्तों के बदले हालात
जहरीली हवाएँ न करे आघात
कलुषित न हो मन आँगन
सुगन्धित हो यह बरसात
भावनाओं को लग पंख
मिलन की मिले सौगात
बौराए पंछी को मिले मीत
बिछुड़न से मिले राहत
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
Aadarniya Hari Prakash dubey Ji,
Aapki hosla afjai ke liye hriday se aabhar. sukriya.
Aadarniya Sethi Ji
Chalo khwab hi sahi par acchhe to ho hain. sukriya.
Aadarniya K.Mishra ji,Dr.Vijay Shanker,Mohan Sethi wa Laxman dhami Ji,
Aap logon ke vichar mere liye bahut bahumulya hain . Aap sabka kotish dhanyabad..... aabhar.
Aapke sujhawon ki liye bhi sukriya.
आदरणीय भाई मठपाल जी अच्छी भावाभिव्यक्ति है .. बहुत बहुत बधाई
ख़वाब अच्छे हैं ....क्षमा चाहूँगा आज के हालात में इसे ख़वाब ही कहना पड़ेगा ....भावपूर्ण सुंदर रचना ...बाधाई
बिछुड़न से मिले राहत..यहाँ तुकांत नही बैठा!! हो सके तो बदल लें! सुन्दर तुकांत कविता पर हार्दिक बधाइयाँ आ० shyam mathpal जी!
Aadarniya Shakur Ji,
Aapko rachna acchhi lagi. Bahut sukriya- aabhar.
आदरणीय मठपाल जी अच्छी भावाभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई
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