For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Shyam Mathpal's Blog (9)

तमन्ना

तमन्ना

इस चमन की सुमन खिलते रहें

सुख दुःख में हम मिलते रहें

लाख कोशिश करे हमें तोड़ने की

हम जुड़े हुवे हम जुड़ते रहें

इंद्रधनुषी रंग छाते रहें

खुशियों के गीत गाते रहें

लहू के रंग फैलायें न कोई

हम जगे हुवे हम जगते रहें

पक्षियों का कलरव गूंजता रहे

पर्वतों को गगन चूमता रहे

आँधियाँ चाहे चले जोर से

हम अडिग हुवे हम अडिग रहें

झरने कल कल झरते रहें

विकास पथ पर बढ़ते रहें

भूल से भी न रोके कोई

हम अजये विजयी रहें

हिम शिखर…

Continue

Added by Shyam Mathpal on April 3, 2015 at 7:30pm — 5 Comments

सच

हर फूल खुश्बू नहीं देता,हर कली  फूल नहीं बनती           

हर चमकता रात  में तारा नहीं होता ,हर चमकता पत्थर हीरा नहीं होता

जरा संभल के मेरे दोस्त हर बात सच्ची नहीं होती

हर मीठा स्वर अच्छा नहीं होता, हर खड़ी जीज सहारा नहीं होती,

हर खून का रिश्ता अपना नहीं होता ,हर दोस्त सच्चा नहीं होता .

जरा सभंल........

हर रात काली नहीं होती,हर दिन उजाला नहीं होता,

हर रात दिवाली नहीं होती, हर रोज होली नहीं होती.

जरा संभल......

हर लाल कपड़ा कफ़न नहीं…

Continue

Added by Shyam Mathpal on March 26, 2015 at 8:44pm — 14 Comments

आज़ादी

मन के कमरे में कैद हमारे भाव विचार

बने वाणी के मोती ,कलम की बहती धार

सुवासित हो फ़िज़ा ,पढ़े सुने संसार

बुने सतरंगी सपने,बरसे प्यार की फुहार

डूबे खुश्बुओं में ,सुगन्धित हो बहार

खुशिओं के फूटे झरने ,भीगें बार -बार

मिले जीने की उमंग,सपना हो साकार

भूल सारे गम ,नव अंकुर का आधार

चाहतों की संतुष्टि ,आशीष से सरोबार

खुले परिचय के द्वार ,जुड़ा नया परिवार

धन्य हो गए हम ,दिलों के जुड़े तार

भूल जोड़ बाकी का गणित ,मिला जीने का…

Continue

Added by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 11:50am — 12 Comments

क्षणिकाएँ

प्रणाम      

 

देश के वीरों को प्रणाम

उन शहीदों को सलाम

हमारे कल के लिए नव कोपलों का बलिदान

माताओं ने किये बेटे कुर्बान

बहिनों ने दिया सुहाग का दान

सदियों सदा याद रखेगा हिंदुस्तान

 

संतान

 

देश के लिए जान दे

देश भक्ति का ज्ञान दे

राष्ट्र भाषा को मान दे

माँ ऐसे संतान दे.

 

आंसू

 

आंसुओं को यों ही पीते रहे

होंठों…

Continue

Added by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 4:00pm — 18 Comments

हालात

सपनो  को बेच  रहा वादों  की मंडी में

शोर बहुत है बस्ती में सुनता नहीं कोई

 

वो वहीँ खड़ा  चल चित्र दिखा रहा

रंगीन चश्मे की दुनियां समझता नहीं कोई 

 

बाहँ थाम कर जिसे उसने आगे बढ़ाया

कन्धों पर चढ़ गया वो  देखता नहीं कोई

 

मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो

वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई

 

चार दीवारें खड़ी कर बन गया मकां

आपस में लड़ते रहे,मोहब्बत जगाता नहीं कोई

  

झंडे किताब के चर्चे  यों  ही होते…

Continue

Added by Shyam Mathpal on March 13, 2015 at 9:07am — 10 Comments

सुप्रभात

कुंठाओं के झरे पात,

आशाओं का हो सुप्रभात

दफ़न हो घात प्रतिघात

खुशिओं के सदा बहें प्रपात

चैन की आए रात

बची रहे इंसानियत की जात

चलती रहे गीत गजलों की बात

हम समझें सबके जज्बात

खुश्बू भरे मौसम से हो मुलाकात

जख्मी रिश्तों के बदले हालात

जहरीली हवाएँ न करे आघात

कलुषित न हो मन आँगन

सुगन्धित हो यह बरसात

भावनाओं को लग पंख

मिलन की मिले सौगात

बौराए पंछी को मिले मीत

बिछुड़न से मिले राहत

मौलिक व…

Continue

Added by Shyam Mathpal on March 11, 2015 at 2:16pm — 14 Comments

खोज

हर जिंदगी मे एक गीत है प्रीति है

पीड़ा है प्यार है

विरह है साथ है

संगीत है साज है

आक्रोश है संतोष है

संतुष्टि है विरोध है

तूफान है स्रोत है

संयम है क्रोध है

पहाड़ है पौंध है

कविता है कहानी है

पर हर जिंदगी सामने कहाँ आ पाती है

कही भाषा नहीं कहीं कलम नहीं है

कहीं हाथ नहीं कही पावँ नहीं हैं

कहीं आँखें नहीं कहीं कान नहीं हैं

कहीं बेबशी  मे  जबान नहीं है.

मौलिक व अप्रकाशित

श्याम…

Continue

Added by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 4:00pm — 6 Comments

एक व्यथा

रातों के बेच कर ,दिन की रोशनी मैं इज्जत से जिन मज़बूरी हैं मेरी

आत्मा को बेच कर ,चहरे पर ये रौशनी झूठी है मेरी

जिनके आगे रातें लूटी हैं लुटाया है मैंने ,

उन्हें दिन में इज्जत देने वालों की पहली कतार में पाया हैं मैने

रातों ......

वैसे कहने को तो सभ कुछ पाया है मैने ,

पर हकीकत ये है ,सब कुछ लुटाया  हैं मैंने

मेरे आंशुओं की नीलामी लगाई हैं उन्होंने

मेरे मजबूरियों की पूरी कीमत पाई है उन्होंने

रातों....

मुझे चीर…

Continue

Added by Shyam Mathpal on January 28, 2015 at 12:00pm — 14 Comments

जीवन यात्रा

यह बचपन ,बचपन मैं जवान हो गया

जानता नहीं बचपन ,बचपन क्या चीज है

नहीं जानता  है यह हंसना -खेलना

नहीं जानता यह रूठना मनाना,

जानता नहीं यह माँ बाप का प्यार

सीखा नहीं क्या होता है बचपन का दुलार

नहीं सीखा इसने पढ़ना लिखना ,

हाँ सीख लिया है जिंदगी को पढ़ना

जानता हैं चौबीसों घंटे मेहनत करना

रोटी कपडा मिलता है इसे इनाम

यह बचपन,बचपन मैं जवान हो गया

अब यह जवान हो गया है

जवान होते होते जिसने अपनी जवानी ,

बचपन मैं…

Continue

Added by Shyam Mathpal on January 25, 2015 at 9:05pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
5 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service