For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तें है बेतार..... (मिथिलेश वामनकर)

22  / 22  / 22  / 22 / 22  /  2

-------------------------------------------

बादल  जब  बेज़ार  किसी  से  क्या कहना

फिर  कैसी  बौछार किसी  से  क्या कहना

 

ख़ामोशी,  सन्नाटें   किस   की   सुनते  है

बातें  है   बेकार  किसी  से   क्या  कहना

 

बूढ़े  पेड़ों  पर   आखिर   क्या   गुजरी   है

पढ़ लो बस अखबार किसी से क्या कहना

 

रोते   है   वाइज़,    रोने   दो   रस्मों   को

कर लो बस यलगार किसी से क्या  कहना

 

अपनी  छतरी  लेकर    निकलों  राहों   में

बारिश  के आसार  किसी  से क्या  कहना

 

जैसे  तैसे  हम   तो  खुद   को  ढो    लेंगे

काँधें  जो  नाज़ार  किसी से  क्या  कहना

 

दूरी  में     अब   कुर्बत   कैसे      आएगी

रिश्तें  है  बेतार   किसी  से   क्या  कहना

 

आदत   अपनी   जाते - जाते      जाएगी

वो भी है  लाचार किसी से  क्या    कहना

 

महफ़िल  में तनहां  थे  पर  खामोश  रहे  

कब थे हम दरकार किसी से क्या  कहना

 

साहिल से ‘मिथिलेश’ न देखों  लहरों  को

जीवन है मझधार  किसी  से क्या कहना

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

Views: 906

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on February 18, 2015 at 10:30pm

bade bhai ......kamal ho gaya ....sadhi , sateek .bebak , pravahyukta rachna , ik ik sher jaise gadha gaya ho .............one of the best of yours ......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2015 at 8:18pm

कमाल ...कमाल ...की ग़ज़ल गाकर देखने में मजा आ गया 

वैसे तो सभी शेर उम्दा हैं कोई कमतर नहीं किनती इनके लिए तो विशेष दाद लीजिये 

जैसे  तैसे  हम   तो  खुद   को  ढो    लेंगे

काँधें  जो  नाज़ार  किसी से  क्या  कहना

 

दूरी  में     अब   कुर्बत   कैसे      आएगी

रिश्तें  है  बेतार   किसी  से   क्या  कहना

 

आदत   अपनी   जाते - जाते      जाएगी

वो भी है  लाचार किसी से  क्या    कहना


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 8:09pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया  जी रचना पर सराहना, स्नेह और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, हार्दिक धन्यवाद

वाइज़ का प्रयोग मैंने धर्मोपदेशक के अर्थ में किया है. कोई त्रुटी हो तो कृपया मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु निवेदन है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 8:09pm

आदरणीय सोमेश भाई जी आपकी सराहना से मन खुश हुआ और रचना की सार्थकता का संतोष भी. हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 8:04pm

आदरणीय खुर्शीद सर, ग़ज़ल पर आपका स्नेह और सराहना पाकर अभिभूत हूँ. आप जैसे ग़ज़लगो, जिनकी ग़ज़लों का नाचीज़ दीवाना है उसे दाद मिल जाए तो बस फिर क्या चाहिए.... जर्रानवाजी के लिए शुक्रिया... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 8:01pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma  जी रचना पर सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार. हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 8:00pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  सर, रचना पर सराहना, स्नेह और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, नमन 

Comment by somesh kumar on February 18, 2015 at 7:16pm

मज़ा आ गया |बेहद लयबद्ध और सुंदर अल्फाजों से लबरेज गज़ल |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 18, 2015 at 6:31pm

बेहद उम्दा गजल कही है आदरणीय मिथिलेश जी. सुंदर मतला और सादगीपूर्ण अशआर पर दिली दाद कुबूल कीजियेगा

तीसरे शेर में 'वाइज' शब्द के अर्थ की प्रतीक्षा रहेगी..  सादर!

Comment by khursheed khairadi on February 18, 2015 at 3:34pm

ख़ामोशी,  सन्नाटें   किस   की   सुनते  है

बातें  है   बेकार  किसी  से   क्या  कहना

 

बूढ़े  पेड़ों  पर   आखिर   क्या   गुजरी   है

पढ़ लो बस अखबार किसी से क्या कहना

दूरी  में     अब   कुर्बत   कैसे      आएगी

रिश्तें  है  बेतार   किसी  से   क्या  कहना

 

आदत   अपनी   जाते - जाते      जाएगी

वो भी है  लाचार किसी से  क्या    कहना

आदरणीय मिथिलेश जी ,मतला ता मक्ता खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |सभी अशआर दिल को छूने वाले है|मक्ते में बड़ा गूढ़ दर्शन ,बड़े ही सहज भाव से सुन्दरता के साथ कहा  गया है | भावों की बाढ़ को बड़े सरल तरीके से सुहावनी रिमझिम में बदला गया है |कमाल की रचना हुई है ,बहुत बहुत बधाई |सादर अभिनन्दन | 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service