For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़लत कोई और है ( अतुकांत ) -- गिरिराज भंडारी

ग़लत कोई और है , हम क्यों बदलें

********************************

बैलों का स्वभाव उग्र होता है , प्रकृति प्रदत्त

होना भी चाहिये

बिना उग्रता के भारी भारी गाड़ियाँ  नहीं खींची जा सकती

जो उसे जीवन भर खींचना है

बिना शिकायत

 

गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है

गायों की थन से बहता दूध ,

दर असल उसकी ममता ही है ,

अमृत तुल्य , कल्याण कारी

 

गायें उग्र नहीं होतीं

प्रकृति जिसे धारिता के योग्य बनाती है , उसे सहन शक्ति भी देती है

गायें घरों में पाली जातीं हैं

उग्रता की कोई खास ज़रूरत भी नहीं पड़ती , अपनों के बीच

 

उग्रता अगर है तो

इनकी उग्रता परिस्थिति जन्य होती है

कुछ गायें घरों की चारदीवारी से बहर निकल जातीं है

उग्रता इनको सीखनी पड़ती है

प्रक़ृति प्रदत्त करुणा को दबा कर किसी कोने में

बाहरी दुनिया में जीने के लिये ज़रूरी भी है , उग्रता

 

मुझे डर है करुणा को दबाये जाने से उसकी मौत का

वैसे भी बहुत अन्दर दब जाना मौत से कम भी तो नहीं है

निष्क्रियता ही तो मौत है

और सांड स्वभाव से मरखंडे होते हैं

होना पड़ता है  ,

इनका कहना है , ये हमारी मज़बूरी है

बे सलीका , बेसहारा , आवारा बाज़ारों में छोड़ देंगे

तो होना ही पड़्ता है , मरख़ंडा , क्योंकि

ज़रूरतें तो इनकी भी हैं ,

छीनेगा झपटेगा , मारेगा किसी को और खायेगा

चाहे डंडे खुद को भी खाना पड़े 

जीवन मिला है तो जियेंगे भी ,

जब तक नही मरे हैं

ग़लती तो उनके मालिकों की है ,

बिना संस्कारित किये जो आवारा छोड़ दिये हैं ,

बिना किसी इंतज़ाम के

 

गलत हर स्थिति में गलत है , और दंडनीय भी

स्थिति विकट है

कानून सजा का भय दे सकता है , परिवर्तन नहीं

और बदलाव ,

बदलाव तो बहुत आंतरिक है

व्यक्तिगत है

 

हर बदलाव ये साबित करता है , हम पीछे ग़लत थे

या हम ग़लत हैं ये मान लें तो ही बदलाव संभव है

और ग़लत हम हैं नहीं ,

ग़लत तो कोई और है

तो सुधरना भी तो किसी और को होगा न

हम क्यों बदलें ॥

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 6:20pm

आदरणीय आशुतोष भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 6:19pm

आदरणीय विजय भाई , रचना को आपका अनुमोदन मिला , रचना सार्थक हुई , सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 6:18pm

आदरणीय सुशील भाई , रचना की रचना के लिये हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 6:17pm

आदरणीय जीतेन्द्र भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2015 at 6:07pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब .इस रचना के माध्यम से आपने सोचने को बिवश किया हैहे ..इशारो इशारों में इशारा करती इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 5:48pm
कानून सजा का भय दे सकता है , परिवर्तन नहीं
बदलाव तो बहुत आंतरिक है
सही कहा , कानून समाज को अपराध से बचाने के लिए होता है , समाज को चलाने के लिए नहीं ,
और ग़लत हम हैं नहीं ,
ग़लत तो कोई और है
हमारे यहां गलत जो हुआ या हो रहा है वह सब ऊपर से हुआ और हो रहा है , तो बदलना तो ऊपर वालों को है , सामान्य जन को नहीं , उनकें बदलने से तो और मुश्किलें बढ़ेगी ही। पर यहीं एक बात आ जाती है वो क्यों बदलेगें , उन्हें तो , जो गलत वो कर रहें हैं उस से लाभ रहा है , अपरवर्तनीय होने का यही तो आदर्श है. इन्हें ही तो राइटिस्ट कहते हैं , बधाई , आदरणीय गिरी राज जी , एक उपेक्षित पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए , सादर।
Comment by Sushil Sarna on February 6, 2015 at 12:10pm

हर बदलाव ये साबित करता है , हम पीछे ग़लत थे
या हम ग़लत हैं ये मान लें तो ही बदलाव संभव है
और ग़लत हम हैं नहीं ,
ग़लत तो कोई और है
तो सुधरना भी तो किसी और को होगा न
हम क्यों बदलें ॥

वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर प्रवाहमयी रचना .... हर परिस्थिति का सुंदर आंकलन करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:33am

वाह! नमन सर. इस बिम्बात्मक कविता को बहुत गहरे चिंतन-मनन की स्याही से लिखा है. एक सच्चाई //हम क्यूँ बदलें//को उजागर करती, बहुत बढ़िया अतुकांत लिखी. ह्रदय से बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service