For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( ग़ज़ल )- ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर खोजिये ---- गिरिराज भंडारी

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये

********************************

 

122    122    122    12

जहाँ ग़म  न हो ऐसा घर  खोजिये

जो हँसता मिले , बामो दर खोजिये

 

कोई  बाइसे  ज़िंदगी  भी  तो  हो

इधर  खोजिये  या उधर   खोजिये

 

बाइसे  ज़िंदगी = ज़िन्दगी का कारण

 

गिरा एक क़तरा था सागर में कल

ज़रा जाइये   अब  असर  खोजिये

 

अँधेरा , यक़ीनों  से  हटता   नहीं

जलें आप खुद , तब सहर खोजिये

सहर = सवेरा

 

अगर  आपका शाना  सूखा है  तो

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये

 

शाना- कांधा , चश्मे तर = गीली आंखें

 

जहाँ से  अकेले ही  जाना है  जब

भला किस लिये हम सफ़र खोजिये

 

निडरता   हमेशा  सही  भी  नहीं

ख़ुदा का ज़रा दिल में डर  खोजिये

 

ख़ुदा का करम ही तो है सीमो ज़र

भला क्यूँ  कहीं अब गुहर खोजिये

 

सीमो ज़र=धन दौलत, गुहर = कीमती पत्थर

 

जमीं,  आसमाँ  से  बहुत  दूर  है

मुझे  नीचे  खोजें , अगर  खोजिये  

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 929

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 10:11am

आदरणीय दिनेश कुमार भाई , हौसला अफज़ई का तहेदिल से शुक्रिया ।

Comment by दिनेश कुमार on February 10, 2015 at 5:59am
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, आदरणीय गिरिराज सर जी। क्या कहने है! वाह वाह! सभी शे'र बेहतरीन।
अँधेरा , यक़ीनों से हटता नहीं
जलें आप खुद , तब सहर खोजिये ..... Kya baat hai
जहाँ से अकेले ही जाना है जब
भला किस लिये हम सफ़र खोजिये ...BAHUT KHOOB

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:47pm

आदरणीय आशुतोष भाई , आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:46pm

आदारणीय उमेश भाई , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:46pm

आदरणीय गुमनाम भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:45pm

आदरणीया  प्रतिभा जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से  शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:43pm

आदरणीय खुरशीद भाई , आप जैसे गज़ल कार से सराहना पाना , तमगे से कम नही है , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 8:42pm

आदरणीय अरुण भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति ही उत्साह वर्धन के लिये काफी है , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 8:28pm

कोई  बाइसे  ज़िंदगी  भी  तो  हो

इधर  खोजिये  या उधर   खोजिये..ये तो करना ही पड़ेगा ..बेहतरीन 

गिरा एक क़तरा था सागर में कल

ज़रा जाइये   अब  असर  खोजिये.....प्रभाव तो होगा ही लेकिन कितनी पैनी निगाहों की जरूरत है 

अगर  आपका शाना  सूखा है  तो

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये,,,,वाकई सही 

जहाँ से  अकेले ही  जाना है  जब

भला किस लिये हम सफ़र खोजिये.....क्या बात है लाजबाब 

निडरता   हमेशा  सही  भी  नहीं

ख़ुदा का ज़रा दिल में डर  खोजिये......ये वो शेर है जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया 

 

ख़ुदा का करम ही तो है सीमो ज़र

भला क्यूँ  कहीं अब गुहर खोजिये.....काश दुनिया ये समझ पाए 

 जमीं,  आसमाँ  से  बहुत  दूर  है

मुझे  नीचे  खोजें , अगर  खोजिये ....बड़प्पन है ये आपका 

हर शेर उम्दा है .बिबिध भावों को समाविष्ट किये इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by umesh katara on February 8, 2015 at 8:04pm

बहुत उम्दा गजल 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service