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महिला पार्षद (लघुकथा) :कान्ता राॅय

हर जगह चुनावी माहौल, पार्षद के चुनाव में जाने कहाँ-कहाँ से कुकुरमुत्ते की तरह  नई नई पार्टियां दिखाई देने लगी । जिन्होंने कभी घर से बाहर कदम नहीं निकाले वे स्त्रियां भी गले में माला डाले गली गली घूम रही है । जाने कौन कौन से कोटे के तहत चुनाव लड रही है । बात करने गई तो मालूम हुआ बात करने में नेताईन को पसीना भी आता है ।
"जीत जायेंगी तो कैसे संभालेंगी इतनी जिम्मेदारी ।"
पूछने पर हँसते हुए कहती है ,  
"अरे, मै कहाँ यह सब तो हमारे "वो" ही संभालेंगे । बस मुझे आप लोग जीतवा देना । "


कान्ता राॅय 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by kanta roy on January 22, 2015 at 8:35pm
बहुत बहुत आभार आपको डाॅ.विजय शंकर जी मेरा हौसला बढाने के लिए ।
Comment by kanta roy on January 22, 2015 at 8:34pm
बहुत बहुत आभार आपको गुमनाम पिथौरागढी जी मेरा हौसला बढाने के लिए ।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 22, 2015 at 8:20pm

आदरणीया कांता जी आपका स्वागत है इस मंच पर , मैं भी २ महीने पहले ही मंच पर आया था , पर यहाँ इतना स्नेह मिला , मिल रहा है , सकारात्मक आलोचना और अवार्ड भी,सबकुछ है यहाँ सीखने को ...पुनः आपका स्वागत , और आँचलिक शब्दों से सजी.....जैसे...नेताईन .... आपकी रचना सुन्दर बन पड़ी है आपको हार्दिक बधाई ! सादर  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 22, 2015 at 7:37pm

सर्वप्रथम आपका ओ.बी.ओ. परिवार में हार्दिक स्वागत, आदरणीया कांता जी. आपकी सार्थक लघुकथा पर आपको बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 22, 2015 at 6:58pm
आदरणीया कान्ता जी यह आपकी पहली प्रस्तुति है इस मंच पर और दमदार भी। सफल लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। स्वीकार करें।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 22, 2015 at 6:48pm
इस मंच पर आपकी पहली प्रस्तुति, आपकी पकड़ सही है, छोटी सी यह कथा बहुत से तथ्य उजागर कर रही है. हम स्वतंत्रता, समानता की बाते बहुत करते हैं , महिला सशक्तिकरण का ढोल पीटते हैं और यथार्थ में सब एक भ्रम दिखाई पड़ता है। बहुत ही सार्थक लघु-कथा , बधाई आदरणीय कान्ता रॉय जी, सादर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 22, 2015 at 6:47pm

वाकई यही सब होता है ,,,वाह रचना सच्चाई को प्रदर्शित करती हुई बधाई

Comment by kanta roy on January 22, 2015 at 12:58pm
आ. डाॅ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपका मार्ग दर्शन आपके हौसला वर्धक शब्दों में ही छुपा है । मै दिल से आभारी हूँ आपकी ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 22, 2015 at 12:29pm

महनीया

अच्छा प्रयास है  i पंच के बाद स्वयं  हक्का-बक्का होना उचित नहीं  पाठक तो  हो ही  रहा है i  सादर i

Comment by kanta roy on January 22, 2015 at 11:22am
आ. सोमेश कुमार जी , मेरी इस मंच पर यह पहली रचना है । मै पूरी कोशिश करूँगी इस मंच के स्तर की रचना शीलता को कायम करने की ।
मेरा हौसला बढाने के लिए आपको शत शत नमन

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