For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिये की बाती मैं
धुए में घिर जाती हूं
कुछ पल को घबराती
तो कुछ पल इठलाती हूँ
चीर तिमिर की छाती मैं
भू को ज्योतिर्मय कर जाती हूँ
अनिल तूफानी तेज हुए
भावुक मन और उत्तेजित हुए
ज्योति शिखर पे नर्तन करती
लिपट दिये के अंतस में
क्षण भर को शर्माती
और सहज धीर बढ़ाती हूँ
राग अनोखे गाती मैं
रागिनी को अपना पाती हूँ
आह समेटे... चाह लिए
क्षणभंगुर आतुर जीवन में
खाक हुई... पीर छिपाई
ज़र्रे ज़र्रे को रोशन करती
अपलक रास रचाती हूँ
दिये की बाती मैं ..
धुए में घिर जाती हूँ
निपट अकेली निडर कभी
उज्ज्वलित निशा को करके….
दिये में ही खो जाती हूँ
@आनंद ११/०१/२०१५  "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 14, 2015 at 8:30pm

खूबसूरत भाव के साथ कविता अच्छी हुई है आनंद जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 12:59pm

आदरणीय आनंद भाई , खूबसूरत  कविता के लिये बधाई ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 12:58pm

क्षणभंगुर आतुर जीवन में 
खाक हुई... पीर छिपाई 
ज़र्रे ज़र्रे को रोशन करती 
अपलक रास रचाती हूँ ........खूबसूरत रचना ,आदरणीय आन्नद मूर्ति जी सुन्दर कविता। हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए।

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 11:59am

आदरणीय आन्नद मूर्ति साहब , सुन्दर कविता है |बधाई स्वीकार करें |सादर अभिनन्दन |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:42am

आदरणीय भाई  आनंद जी, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:39am

चीर तिमिर की छाती मैं
भू को ज्योतिर्मय कर जाती हूँ
अनिल तूफानी तेज हुए
भावुक मन और उत्तेजित हुए
ज्योति शिखर पे नर्तन करती
लिपट दिये के अंतस में
क्षण भर को शर्माती
और सहज धीर बढ़ाती हूँ-----------------------सुन्दर भाव i

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2015 at 11:01am

बहुत  ही सुन्दर प्रस्तुति  //हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:54am
आदरणीय आनंद जी सुन्दर कविता। हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
15 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service