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लघुकथा : फेस वैल्यू (गणेश जी बागी)

"चंद्रा साहब कवि सम्मलेन कैसा रहा ? इस कार्यक्रम का टोटल मैनेजमेंट मेरे द्वारा ही किया गया था."

"गुप्ता जी मैं कोई साहित्यकार तो हूँ नहीं किन्तु खचाखच भरा सभागार, श्रोताओं के कहकहे और तालियों से लगा कि कार्यक्रम सफल रहा. किन्तु मुझे एक बात समझ में नहीं आयी कि वो दो लड़कियां... अरे क्या नाम था ... हां कविता ‘क्रंदन’ और शबनम ‘सिंगल’, इन्हें क्यों मंच पर बैठाया गया था, वो दोनों क्या पढ़ रहीं थीं ... यार मेरे पल्ले तो कुछ भी नहीं पड़ा."

"हा हा हा, लेकिन सीटियाँ और तालियाँ तो बजी न ! और दोनों.....माशाअल्लाह.... खुबसूरत भी हैं."

"किन्तु गुप्ता जी, क्या खूबसूरती ही सब कुछ है, भई टैलेंट भी कोई चीज होती है."

"आप नहीं समझेंगे चंद्रा साहब, फेस वैल्यू भी कोई......."

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : न्यू ट्रेंड 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 9, 2015 at 12:48pm

हा हा हा कमाल करते हैं आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी साहब खैर .....उत्साहवर्धन और सराहना हेतु दिल से आभार.

Comment by Sushil Sarna on January 9, 2015 at 12:35pm

हा हा हा   .... क्या बात क्या बात है आदरणीय वर्तमान में बजने वाली तालियों का कितना सुंदर अर्थ दर्शाया है आपने अपनी इस लघु कथा में। इस भौतिकवादी युग में यथार्थ खामोशी के आवरण में स्वयं को समेटे है और आडंबर का भीड़ में 'फेस वेल्यू ' का बोल बाला है। इस सार्थक और सफल लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 9, 2015 at 12:29pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया अर्चना जी.

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2015 at 12:12pm

बेहतरीन लघुकथा,,बधाई आपको

 सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2015 at 11:44am

आदरणीय भाई गणेश जी इस बेहतरीन लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई . साहित्य के क्षेत्र में इस फेस वेल्यु के जनक (अगर में ग़लत नहीं हू तो) राजेंद्र यादव जी कहे जाते है .पर इतिहास इसे महत्व नहीं देता .

Comment by khursheed khairadi on January 9, 2015 at 11:18am

हा. हा.. हा... आदरणीय बागी सर 'फेस वेल्यु ' की बात कहकर आपने मुझ सरीखे नव सर्जकों को हतोत्साहित सा कर दिया है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Archana Tripathi on January 9, 2015 at 1:24am

बेहतरीन लघु कथा
दिन-प्रतिदिन नारी स्वयं को नुमाइशी वस्तु बनाती जा रही है।
कभी-कभी समझ नहीं आता की प्रोग्राम किसके लिए चल रहा है।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 8, 2015 at 8:45pm

आपके कहे से सहमत हूँ आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, लघुकथा पसंद करने हेतु आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 8, 2015 at 8:30pm

जी आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, यह मैनेजमेंट ही है जो साहित्य को बजारू बना दिया है, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 8, 2015 at 8:26pm

आदरणीय बागी जी

बहुत ही बेहतरी कथा i फेस वैल्यू के लिए कितने घटिया हथकंडे अपनाते है लोग  i ऐसा भी देखने में आया है कि धार्मिक कार्यक्रमों में भी इसी फेस वैल्यू के लिए अश्लील बॉलीवुड नृत्य करने हेतु लड़कियां बुलाई जाती है i  धन्य है ऐसी फेस  वैल्यू i  सादर i

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