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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

2122

ज़िन्दगी है

बोझ सी है

इश्क तो अब

ख़ुदकुशी है

इक ग़ज़ल सी

तू हँसी है

अब ग़मों से

दोस्ती है

बुलबुले सी

ये ख़ुशी है

आफतों से

दोस्ती है

इक पहेली

ज़िन्दगी है

शोर गुमनाम

दिल में भी है

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2014 at 9:20pm

बहुत खूब , आदरणीय गुमनाम भाई , छोटी बहर मे बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही , बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2014 at 8:06pm

गुमनाम जी

क्या बात है  i इसे कहते है गागर में सागर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2014 at 7:03pm

आदरणीय गुमनाम जी एक रुक्नी में आपका यह प्रयोग नायाब है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2014 at 2:18pm

बहुत खूब ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गजल पर आपको दिल से बधाई

Comment by vandana on December 27, 2014 at 6:21am

बहुत सुन्दर ...शानदार ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by वीनस केसरी on December 27, 2014 at 1:08am

सुन्दर सफल प्रयोग

हार्दिक बधाई

Comment by ajay sharma on December 26, 2014 at 10:35pm

chhoti bahr ka uttam prayas .......bahut hi acchha 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 8:50pm

बेहतरीन ग़ज़ल.... छोटी बह्र की ग़ज़ल कहने का मज़ा ही अलग है ... आपने बहुत उम्दा लिखी है आपको बहुत बहुत बधाई 

इस ग़ज़ल में 

शायरी है 

Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 8:45pm
भाई गुमनाम जी छोटी बह्र में ज़ोरदार ग़ज़ल।।हार्दिक बधाई।।
अंतिम शेर पुनः देख लें।।सादर
Comment by Anurag Prateek on December 26, 2014 at 8:44pm

मान्यवर,

आपने  शायद ‘हसीं’ कि जगह  ‘हँसी कहा  हैं जो ‘हसीन’ का संक्षिप्त रूप है. इसलिए काफ़िया ग़लत है. प्रयास काबिले तारीफ

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