For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल ~ बज्म ए मुहब्बत मेँ

122 122 122 122

मुहब्बत मेँ अब क्या से क्या बन गया वो ।
किसी की नजर का खुदा बन गया वो ।

कि अब मन्नतोँ मेँ भी है नाम उसका ,
किसी दिल की माँगी दुआ बन गया वो ।

किसी ने तराशी जो तस्वीर उसकी ,
तो इंसान सबसे जुदा बन गया वो ।

उसे देखकर देखकर चैन पाता है कोई ,
किसी दर्दे दिल की दवा बन गया वो ।

कभी बेवफाई के भी था न काबिल ,
मगर अब किसी की वफा बन गया वो ।

लिखी थी खिजाँओँ ने तकदीर जिसकी ,
बहारोँ की महकी फिजा बन गया वो ।

कहीँ दिल की राहोँ मेँ उसका मकाँ है ,
कि अब आशिकी का पता बन गया वो ।

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज मिश्रा

Views: 508

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2014 at 9:46am

बहुत खूब सूरत गज़ल हुई है , आदरणीय नीरज भाई , दिल से बधाई !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 11:58am

नीरज जी

बहुत खूब  i बहुत पसंद आयी गजल i हर शेर सवा शेर है i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2014 at 7:24pm

बहुत खूब, रचना पर आपको  बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on December 13, 2014 at 10:20am

बहुत खूब ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गजल पर आपको दिल से बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 13, 2014 at 6:56am
कभी बेवफाई के भी था न काबिल
कि अब आशिकी का पता बन गया वो ।
बहुत खूब, आदरणीय नीरज मिश्रा जी, बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2014 at 10:43pm

किसी ने तराशी जो तस्वीर उसकी ,
तो इंसान सबसे जुदा बन गया वो ।--वाह्ह्ह्ह 

अच्छी ग़ज़ल हुई है और ये शेर तो कमाल का कहा है 

बधाई आपको 

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 12, 2014 at 10:34pm
किसी ने तराशी जो तस्वीर उसकी ,
तो इंसान सबसे जुदा बन गया वो ।बहुत खूब भाई वाह!
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 12, 2014 at 6:06pm

वाह अच्छी ग़ज़ल कही है भाई जी


 कहीँ दिल की राहोँ मेँ उसका मकाँ है ,
कि अब आशिकी का पता बन गया वो ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service