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लघुकथा : दृष्टिकोण (गणेश जी बागी)

"हेलो, हाँ डॉक्टर साहब ! नमस्कार, बिटिया की शादी का निमंत्रण कार्ड भिजवा दिया है, भाभी जी और बच्चो को लेकर अवश्य आइयेगा"

"जी भाई साहब, नमस्कार, कार्ड मिल गया है, श्रीमती जी बच्चो के साथ जायेंगी, मैं न आ सकूँगा, आपको तो पता ही है शहर में डायरिया फैला हुआ है"

"हां, वो तो है, पर आपकी भगिनी की शादी है, कमसे कम दो दिन का भी समय निकालिये"

"माफ़ी चाहूंगा भाई साहब, सीजन चल रहा है यही तो दो पैसे कमाने के दिन हैं"

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : रुतबा

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:50pm

आदरणीय बागी जी

डाक्टर साहेब के पास  'भगिनी ' की शादी में भी जाना आर्थिक लाभ की सम्भावना  के  कारण  संभव नहीं   !  अर्थ के दानव ने  मानव को बिलकुल ही संवेदनशुन्य कर दिया है  i ऐसे मानव से तो पशु अच्छे है i  संवादों के बीच छिपा व्यंगार्थ उभर कर आया है i आपको  बहुत= बहुत बधाई i  सादर i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2014 at 11:51am

अब रिश्ते नाते से भी ऊपर व्यवसाय हो गया है और जिनके पेशे में सेवा भाव निहित है वह रिश्तों से अधिक कमाई को ही 

तरजीह दे रहे है, ऐसी मानसिकता पर गहरा तंज कसने में सफल रही लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आ. श्री गणेशजी "बागी" जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2014 at 11:43am

आदरनीय बागी जी , डाक्टर, जिन्हे हम ईश्वर का इंसानी रूप मानते हैं , आज उनकी मानसिकता कहाँ तक गिर चुकी है बड़ी खूब्सूरती से आपने लघुकथा मे बयान किया है ! हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 4, 2014 at 11:10am

आदरणीया वंदना जी, आपकी प्रोत्साहित करती टिप्पणी मेरे लिए महत्वपूर्ण है, हृदय से आभार आपका।

Comment by Shyam Narain Verma on November 4, 2014 at 11:10am

अति सुन्दर लघु कथा। बधाई।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 4, 2014 at 11:09am

आदरणीय जीतेन्द्र जी, आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है, बहुत बहुत आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 4, 2014 at 11:07am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, लघुकथा पर आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धक है, सादर आभार।

Comment by vandana on November 4, 2014 at 7:02am

मानसिक रूप से हम कितने दिवालिया होते जा रहे हैं ...आपकी कथाओं में हमेशा यह बिंदु  बहुत सटीक तरीके से व्यक्त किया जाता है इसके लिए आपको बहुत २ बधाई आदरणीय गणेश जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 3, 2014 at 9:30pm

बहन की शादी में न जाना, लोगो की सेवा भी हो सकता था. किन्तु आज के समय में दो पैसे ज्यादा महत्व रखते है. बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय बागी जी, आपकी लघुकथाओं का शीर्षक ही पूर्ण सार कह देता है. आपको बहुत-बहुत बधाई ,सर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2014 at 9:23pm

आदरणीय जवाहर लाल जी, सदैव की भाति प्रोत्साहित करती आपकी टिप्पणी हेतु हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, स्नेह यूँ ही बना रहे, सादर।

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