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लघुकथा : रुतबा (गणेश जी बागी)

संजना लाल सुर्ख जोड़े और गहनों में नयी दुल्हन सी लग रही थी, मुहल्ले की औरतों के साथ करवा चौथ की पूजा कर वो अभी घर लौटी ही थी कि उसकी सहेली रेशमा आ गयी।
"अरे वाह संजना, बड़ी सुन्दर लग रही है, तेरा प्यार भी गज़ब है, तीन साल से डाइवोर्स का केस चल रहा है, दो चार महीने में तुम्हे डायवोर्स भी मिल जाएगा फिर भी तुम राहुल की लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रख रही हो !"
"ऐ.…… हलो !! राहूल ....... माय फूट !!" उस कमीने की लम्बी उम्र के लिए मैं व्रत रखूँगी ? मैं तो यह सोच कर व्रत कर लेती हूँ कि नये फैशन के गहने और कपड़े मुहल्ले की औरतें देख भी लेंगी और मेरा रूतबा भी बना रहेगा ।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Omprakash Kshatriya on October 27, 2018 at 6:01pm

आदरनीय गणेश बागी जी , समय की नब्ज़ पर हाथ रख कर लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई इस शानदार लघुकथा के लिए .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 1:46am

गज़ब व्यंग्य .... सधी हुई संतुलित लघुकथा  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 11, 2014 at 12:47am

वाह ! ..  :-))

का हो !..  ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब.. !! ..

एह लघुकथा के विन्यास, तथ्य, कथ्य, संवाद आ उद्येश्य के प्रस्तुतीकरण में संतुलन देखि के मन खुश भ गइल बा..

बहुत-बहुत बधाई, गनेस भाई.. बहुत-बहुत बधाई.. !

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 16, 2014 at 2:40pm

आदरणीय गणेश भाईजी

फैशन की मारी, अति आधुनिक नारी , न होगी कभी अभागिन । 

पति बेचारा रहे न रहे , कोई फर्क न पड़े , रहती सदा सुहागिन ॥ 

लघु कथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:30pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया वंदना जी। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:29pm

सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय सोमेश जी।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:28pm

आदरणीया डॉ प्राची साहिबा, लघुकथा पर आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:26pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सदैव की भाति इस बार भी आपकी प्रतिक्रिया प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:25pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 15, 2014 at 5:35pm

आदरणीय बागी जी

लघु-कथा का रुतबा कायम है i  यदि यह हकीकत है तो अकल्पनीय है i कैसे करूं नारी विमर्श i  कैसे कहूं - नारी तुम केवल श्रृद्धा हो  ! एक और  सामाजिक व्यंग्य  को उकेरती  आपकी लेखनी i  जय हो ! सादर i

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