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2122 1122 22

खुद से यूँ आप वफ़ा कर चलिये

गाह सच को न छुपा कर चलिये

 

मैं इबादत में करूँ सजदे आप

दैर पर शीश नवा कर चलिये

 

दिल में भर जाये सड़न ही न कहीं

नफ़रतें दिल से हटा कर चलिये

 

चलिये महका के ज़माने भर को

प्यार का फूल खिला कर चलिये

 

कीजिये अम्न की कोशिश यों भी

हक़ में इंसाँ के दुआ कर चलिये

 

क्यूँ रहे हुस्न ही पर्दे में जनाब

आप भी नज़रें झुका कर चलिये

 

अब तलक ज़ख़्म कहीं बाकी है

बेवजह दिल न दुखा कर चलिये

 

बुझ रहा है तो इसे बुझने दें

यूँ शरर को न हवा कर चलिये

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:32pm

आदरणीय नरेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:31pm

आदरणीय श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:30pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:29pm

आदरणीय सोमेश जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:17am

वाह भाईजी .. ग़ज़ल अच्छी हुई है. 
वैसे कुछ शेर सपाट से अवश्य प्रतीत हो रहे हैं. लेकिन इस शेर पर बार-बार दाद लीजिये -

क्यूँ रहे हुस्न ही पर्दे में जनाब

आप भी नज़रें झुका कर चलिये

शुभ-शुभ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2014 at 2:51pm

क्यूँ रहे हुस्न ही पर्दे में जनाब

आप भी नज़रें झुका कर चलिये---------------बेहतरीन  i जादू है  कलम का i

 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 29, 2014 at 10:48pm

उम्दा ग़ज़ल

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 29, 2014 at 8:57pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आज काफी दिनों बाद आना हुआ ..आपकी बेहतरीन ग़ज़ल , को पढने का मौका मिला ...हर शेर उम्दा है .इस सुंदर सन्देश प्रद ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर

Comment by vijay nikore on October 29, 2014 at 3:47pm

हर शेर एक से बढ़कर एक ! हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 29, 2014 at 11:00am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही शिज्जू भैय्या हर शेर शानदार है ,दिली दाद कबूलें 

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