For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --आदमी खुद को बनाता आदमी है आदतन ( गिरिराज भंडारी )

आदमी खुद को बनाता आदमी है आदतन

****************************************

२१२२     २१२२     २१२२     २१२

आदमी  में   जानवर    भी    जी  रहा  है  फ़ित्रतन

आदमी   में  आदमी  को   देखना   है  इक  चलन 

साजिशें  रचतीं   रहीं हैं   चुपके   चुपके   बदलियाँ

सूर्य को ढकना कभी मुमकिन हुआ क्या दफअतन ?

 

पर   ज़रा तो   खोलने   का वक़्त  दे, ऐ  वक़्त  तू  

फिर   मेरी   परवाज़   होगी   और ये   नीला गगन

 

बाज,   चुहिया   खा   गया, चालाकियों से ,चाल से

ये भी हम क्या  कह सके हैं बाज को, है   बदचलन 

 

हो   कहीं   मंज़र   गलत   तो   चादरों को तान के

तू   मेरी   तारीफ़   में  लग, मैं तेरी , दोनों मगन

 

शह्र   में   खोजा   बहुत   वो घर जिसे मैं घर कहूँ

बेहिसी   छाई   हुई   केवल   मिले    कंक्रीट  वन     

 

सिर्फ    भाटों - चारणों    की   लाइने  हैं  हर तरफ़   

हर  कोई  है  कर  रहा   उगते हुओं का ही  स्तवन 

तू   ही   मेरे  हौसले   की लाज   रखना  ऐ  ख़ुदा

मैं   सवेरे   नाम   ले के   कर   रहा हूँ   आचमन

************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

Views: 826

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2014 at 10:12pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , उत्साह वर्धन के लिए आपका शुक्रिया |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 16, 2014 at 9:05pm

हर एक शे'र तारीफ़ के काबिल है आदरणीय गिरिराज जी, सादर नमन आपकी लेखनी को.

Comment by saalim sheikh on September 16, 2014 at 1:44pm

खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2014 at 12:51pm

मित्र

तकनीकी पक्ष आप संभालो  पर गजल का भाव पक्ष बहुत उम्दा है i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2014 at 10:30am

आदरणीय श्याम भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका बहुत आभार |

Comment by Shyam Narain Verma on September 16, 2014 at 9:53am
सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई.....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 6:34pm

आदरणीय गुमनाम भाई , आपने सही कहा  है , अभी काफिया में गडबडी है , शुरू के दो शेर में तन काफिया है बाकी में अन है , सुधार लेता हूँ , याद दिलाने का शुक्रिया |

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 15, 2014 at 6:22pm

giriraaj ji ........... kya ye kafiya maanya honge............फ़ित्रतन  आदतन ----तन.........गगन , बदचलन ,मगन ,स्तवन , आचमन ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
11 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service