For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक तरही ग़ज़ल - “ शाम ढले परबत को हमने सौंपे बंदनवार नए “ ( गिरिराज भंडारी )

“ शाम ढले परबत को हमने सौंपे बंदनवार नए “

   22   22   22   22   22   22   22  2

लगे कमाने जब भी बच्चे बना लिए घर बार नए

मगर बुढ़ापे को क्या देंगे उस घर में अधिकार नए ?

 

आयातित हो गयी सभ्यता पच्छिम, उत्तर, दच्छिन की

बे समझे बूझे ले आये घर घर में त्यौहार नए

 

हाय बाय के अब प्रेमी सब, नमस्कार पिछडापन है

परम्पराएं आज पुरानी खोज रहीं स्वीकार नए

 

पत्ते - डाली ही  काटे  हैं ,  जड़ें वहीं की  वहीं रहीं

इसी लिए तो रोज़ पनपते जाते हैं मक्कार  नए

 

थोड़ा अहम तुम्हारा टूटे , थोड़ा सा पिघले मेरा

इस टूटे रिश्ते में खोजें आ फिर से अधिकार नए  

 

ता कि नई सुबह में पायें सजी हुई हम किरणों को

‘’ शाम ढले परबत को हमने सौंपे बंदनवार नए ’’

**************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित  (  संशोधित  )

Views: 859

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 6:12am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी गरिमामयी उपस्थिति से , सहारना से ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ | आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 6:10am

आ. जवाहर लाल भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 6:09am

आदरणीय राम भाई , आपका बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 6:08am

आदरणीय गोपाल भाई , आपकी प्रतिक्रया से बहुत खुशी हुई , इस बहार में मात्राओं का ताल मेल ही बहुत ज़रूरी होताहै , साधा पाया है जान कर खुशी हुई | आपका हार्दिक आभार |

पच्‍छीम, दच्छिन  स्वीकार्य होना तो चाहिए , मैं  दावा नहीं करता , लें अस्वीकार्य भी हो असली शब्द की मात्राएँ भी वही हैं , इसीलिये मैं प्रयोग के तौर में उपयोग कर लिया हूँ  | आपका पुन: आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 6:01am

आदरणीय विजय शंकर भाई गज़ल की सराहना और अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 6:00am

आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफजाई का तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 5:59am

आदरणीया राजेश जी , आपकी उपस्थिति और सराहना के गज़ल कहना सार्थक कर दिया | आपका दिली शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2014 at 5:58am

आदरणीय हरि वल्लभ भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका बहुत आभार

Comment by vijay nikore on September 10, 2014 at 11:33pm

बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है। बधाई, आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 10, 2014 at 10:30pm

थोड़ा अहम तुम्हारा टूटे , थोड़ा सा पिघले मेरा

इस टूटे रिश्ते में खोजें आ फिर से अधिकार नए  

सार्थक सन्देश के साथ सम्पूर्ण गजल! आदरणीय गिरिराज जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
3 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service