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गीत (कल्पना मिश्रा बाजपेई)

बंसी का बजाना खेल भी है

गिरिवर का उठाना खेल नहीं

भक्तों के भारी संकट में

दुख दर्द मिटाना खेल नहीं है !!

 

एक विप्र सुदामा आया था

वो भेंट में तंदुल लाया था

पल भर में ही दीन दुखी को

धनवान बनाना खेल नहीं !!

 

कौरव दल द्रुपद दुलारी की

सुन कर पुकार दुखियारी की

दो गज की सारी में देखो

अंबार लगाना खेल नहीं !!

 

था कंस बड़ा अत्याचारी

देता था सबको दुख भारी

उसको जा मारा मथुरा में

दुष्टों को घटाना खेल नहीं !!

 

बंसी का बजाना खेल भी है

गिरिवर का उठाना खेल नहीं

 

कल्पना मिश्रा बाजपेई

(मौलिक व अप्रकाशित)  

 

 

 

Views: 3405

Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on August 18, 2014 at 8:30pm

आ० Dr. Vijai Shanker सर हार्दिक आभार /सादर  

Comment by kalpna mishra bajpai on August 18, 2014 at 8:29pm

आ०डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर हार्दिक आभार /सादर 

Comment by annapurna bajpai on August 18, 2014 at 8:04pm

आ0 कल्पना जी बहुत सुंदर गीत बहुत बधाई । 

Comment by Meena Pathak on August 18, 2014 at 7:27pm

बहुत बहुत सुन्दर गीत ..बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 18, 2014 at 2:05pm

सुंदर रचना की है | हार्दिक बधाई आद कल्पना मिश्रा जी 

Comment by Shyam Narain Verma on August 18, 2014 at 12:06pm
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. "
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:39am

आ० कल्पना बहन इस बेहतरीन गीत के हिये हार्दिक बधाई .

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 17, 2014 at 11:26pm
सुन्दर पंक्तियाँ , सुन्दर विचार ,
था कंस बड़ा अत्याचारी
देता था सबको दुख भारी
उसको जा मारा मथुरा में
दुष्टों को घटाना खेल नहीं !!
बधाई आदरणीय कल्पना मिश्रा बाजपेई जी .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2014 at 9:30pm

कल्पना जी आपने सच कहा -

गिरिवर का उठाना खेल नहीं

भक्तों के भारी संकट में

दुख दर्द मिटाना खेल नहीं है !!

कृपया ध्यान दे...

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