For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राष्ट्र-रूप (घनाक्षरी) // --सौरभ

देश  है नवीन  किन्तु, राष्ट्र है सनातनी ये,  मान्यता और संस्कार की  लिये निशानियाँ
था समस्त लोक-विश्व क्लिष्ट तम के पाश में, भारती सुना रही थी नीति की कहानियाँ
संतति  प्रबुद्ध मुग्ध  थी  सुविज्ञ  सौम्य उच्च, बाँचती थी धर्म-शास्त्र को सदा जुबानियाँ
स्वीकार्यता  चरित्र  में,   प्रभाव  में  उदारता,   शांत  मंद  गीत  में  सदैव थीं रवानियाँ

खिड़कियाँ खुली रखीं, खुले रखे थे द्वार भी, शांति-ज्ञान-भक्ति का सुदीप भी जला रहा
किन्तु  आँधियाँ  चलीं  कि  राख-धूल  भर  गयी, राक्षसी प्रहार झेलने का मामला रहा  
हत रहा था भाग्य  किन्तु  चेतना जगी रही, भारती  का रूप दिव्य शस्य-श्यामला रहा
सहस्र वर्ष ग्लानि की  अमावसें हुई विदा,  स्वतंत्र  सूर्य  शक्ति  का व्यापना भला रहा      

नीतियाँ बनीं यहाँ  कि तंत्र जो चला रहा, वो श्रेष्ठ भी दिखे भले,  परन्तु लोक-छात्र हो
तंत्र  की  कमान  जन-जनार्दनों के  हाथ हो,  त्याग  दे वो राजनीति जो लगे कुपात्र हो
भूमि-जन-संविधान,  विन्दु  हैं  ये  देशमान,  संप्रभू  विचार में न  ह्रास लेश मात्र हो
किन्तु  सत्य  है यही  सुधार हो सतत यहाँ, ताकि राष्ट्र का समर्थ शुभ्र सौम्य गात्र हो
*****************
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1101

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 12, 2014 at 5:00pm

आदरणीय विजय जी, आपकी सम्मति मिली मेरा रचनाकर्म सार्थक हुआ.
अनुमोदन हेतु सादर धन्यवाद.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on August 12, 2014 at 2:10pm

आदरणीय सौरभ भाईजी,

सभी पंक्तियों में ओज है प्रवाह है भारत का इतिहास है वर्तमान है अच्छे भविष्य के लिए कुछ सही सुझाव भी हैं और शुरुवात भी शानदार हुई है........     

देश  है नवीन  किन्तु, राष्ट्र है सनातनी ये मान्यता व संस्कार की  लिये निशानियाँ 

स्वीकार्यता  चरित्र  में,   प्रभाव  में  उदारता,   शांत  मंद  गीत  में  सदैव थीं रवानियाँ 

 

हत रहा था भाग्य  किन्तु  चेतना जगी रही, भारती  का रूप दिव्य शस्य-श्यामला रहा 
सहस्र वर्ष ग्लानि की  अमावसें हुई विदा स्वतंत्र  सूर्य  शक्ति  का व्यापना भला रहा      

 

पाठक का सीना पढ़ते - पढ़ते ही गर्व से फूलने लगता है।  

नीतियाँ बनीं यहाँ  कि तंत्र जो चला रहा, वो श्रेष्ठ भी दिखे भले परन्तु लोक-छात्र हो 
तंत्र  की  कमान  जन-जनार्दनों के  हाथ हो त्याग  दे वो राजनीति जो लगे कुपात्र हो 
भूमि-जन-संविधान विन्दु  हैं  ये  देशमान संप्रभू  विचार में न  ह्रास लेश मात्र हो 
किन्तु  सत्य  है यही  सुधार हो सतत यहाँ, ताकि राष्ट्र का समर्थ शुभ्र सौम्य गात्र हो

 

मन की बात कह दी कुछ कठोरता के साथ, लेकिन अच्छी सलाह भी दे दी ,

काश इस घनाक्षरी की प्रतियाँ लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा के सभी सदस्यों मंत्रालय सचिवालय में बट जाती और वे इस पर अमल करते तो अच्छे दिन अवश्य आ जाते॥

आदरणीय क्षमा प्रार्थना के साथ अपनी बात कह रहा हूँ........ पूरी 12 पंक्तियों में प्रवाह है किंतु प्रथम पंक्ति का द्वितीय चरण कुछ बाधित लगता है ( शायद मात्रा कम / ज़्यादा है )

मान्यता व संस्कार की  लिये निशानियाँ ..... “ व ” अवरोध पैदा करता है इसे हटा देने से ...

देश  है नवीन  किन्तु, राष्ट्र है सनातनी,  ये  मान्यता, संस्कार की  लिये निशानियाँ 

अथवा......देश  है नवीन  किन्तुराष्ट्र है सनातनी,  मान्यता, संस्कार की  लिये हुए निशानियाँ 

भाईजी आपकी प्रतिक्रिया से मुझे भी कुछ सीखने मिलेगा , धृष्टता  के लिए  पुनः क्षमा चाहता हूँ 

सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 12:06pm

आ० भाई सौरभ जी , इस समझाईस भरी  रचना के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 10:03am

बहुत सुंदर रचना. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सौरभ जी

Comment by kalpna mishra bajpai on August 11, 2014 at 7:29pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।/सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 5:16pm

आदरणीय सौरभ जी

आपने बहुत अच्छा समझाया  i आपका  आभार i

Comment by savitamishra on August 11, 2014 at 3:32pm

बहुत खुबसुरत .._/\_

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 3:00pm

बहुत कठिन है ऐसी उत्कृष्ट रचना का सर्जन।

//खिड़कियाँ खुली रखीं, खुले रखे थे द्वार भी, शांति-ज्ञान-भक्ति का सुदीप भी जला रहा
किन्तु  आँधियाँ  चलीं  कि  राख-धूल  भर  गयी, राक्षसी प्रहार झेलने का मामला रहा  //

अलौकिक बिम्ब बनाती इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:18pm

आदरणीय विजयजी, आपका औदार्य मुझे अभिभूत कर रहा है.
प्रस्तुति को सम्मान देने के लिए आपका सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:18pm

भाई रामशिरोमणी, आपकी उपस्थिति ने मुझे एक बार ऊर्जस्वी कर दिया है. विश्वास है, आपका भी रचनाकर्म सतत बना रहेगा.
शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service